________________
(१००)
॥ दंडक विस्तरार्थः ।
विस्तरार्थः - आ गाथामां कया दंडकना जीवो एक समयमां एटले समकाळे केटला उपजे ! अने मरण पाये ? तेनी संख्यानो नियम जणाववा माटे कहे छे के संखमसंखा समए-गग्भतिरिविगलनारयसुरा य - गर्भजतिर्यंच - द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय- नारक ने देवना १३ ए प्रमाणे १८ दंडकना जीवो १ समयमां जघन्यथी संख्यात एटले कमीमां कमी. १-२-३ यावत् उत्कृष्ट संख्याता उत्पन्न थाय, अने उत्कृष्टथी असंख्याता उत्पन्न थाय, पण अनंत न उपजे, कारणके ए१८दंडकम दरेक दंडकनी अंदर त्रणे काळमां तपासीए तो सर्व जीवो पण ' असंख्यज छे. पुनः मरण पण एटला ज जीवो पाने ए प्रमाणे आगळ सर्वत्र उत्पत्तिवत् मरणसंख्या जाणवी,
"
तथा - मणुआ नियमा संखा - गर्भजमनुष्यो निश्वयथी. संख्यातज छे. अने ते पण बेनी संख्यानो ६ वार वर्ग करी ५ मा वर्ग साथे गुणाकार करे तेटली अथवा १ ने९६ बखत ठाण बमणा करे तेटला ग० मनुष्यो छे. ते सर्व संख्या ७९२२८१६२५१४२६४३३७५९३५४३९५०३३६ ए प्रमाणे २९ आंकडानी संख्याए गर्भजमनुष्य होय छे, अने मनुष्यना अशुचि १४ स्थानकोमां उपजता सम्मूच्छिम मनुष्यो असंख्याता ज होय छे तेथी बेउ (ग० सं०) मनुष्योनी सेख्या असंख्यात प्रमाण थाय, पण कोइक का - विशेषमां सम्मूच्छिमनो २४ मुहूर्तनो विरहकाल पडे छे, ते बखते पूर्वना उत्पन्न थयेला अन्तर्मुहूर्तनुं आयुष्य होवाथी अन्तर्मुहूतैं चवी जाय छे. ते वखते साधिक २३ मुहूर्त सुधी एकला गर्भज मनुष्यो ज होय छे तेनी संख्या उपर लख्या प्रमाणे जाणवी,
૧ 'वैमानिकदंडकमां सर्वार्थसिद्धमांज मात्र संख्यात देवो छे, शेष सर्व देवलोकमां असंख्य देवोते,