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________________ ॥ दंडकेषु दर्शनद्वारवर्णनम् ॥ (१०१) वणणंता-वनस्पति काय रूप १ दंडकमां एक समये अनंत जीवो उत्पन्न थाय छे, अने मरण पामे छे. त्यां प्रत्येक वनस्पतिजीवो असंख्यात ज होवाथी एक समयमा असंख्य उपजे अने असंख्य मरण पामे, अने सूक्ष्म साधारणवनस्पति तथा बादरसाधारणवनस्पति ए बन्नेमा प्रतिसमय एक निगोदगत जीवराशिथी असंख्यातमा भाग जेटला जीवो उत्पन्न थायछे अने मरण पामे छे, कारणके बन्ने वनस्पतिजीवो जगत्मां अनंत अनंत छे, ___थावर असंखा-वनस्पति सिवाय पृथ्वीकायादि ४ दंडकना जीवो एकसमयमा असंख्यात उपजे अने असंख्यात मरण पामे कारणके पृथ्वीकायादि चारे जीवो असंख्य असंख्य छे, पण भनन्त नथी वळी एमां कोइ पण समये संख्यात जीवो न उपजे. ___अवतरण-आ गाथाना पूर्वाधमां बाकी रहेला दंडके उपपात अने च्यवन द्वार अने उत्तरार्धथी दरेक दंडके आयुष्यद्वार कहे छे. ॥ मूळ गाथा २६ मी. ॥ असन्नि नर असंखा, जह उववाए तहेव चवणे वि। बावीस सग ति दस वोस--सहस्स उकिट पुढवाइ. २६ ॥ संस्कृतानुवादः ॥ असंज्ञिनरा असंख्येया, यथोपपातस्तथैव च्यवनमपि । द्वाविंशत्सप्तत्रिदशवर्ष-सहस्रा उत्कृष्टं पृथ्व्यादयः॥२६॥ ॥ शब्दार्थः ॥ असन्नि-असंज्ञि (सम्मूच्छिम)| उववाए- उपपातद्वारमा नर--मनुष्य तहेव-तेवी रीतेज असंखा- असंख्यात चवणेऽवि- व्यवनद्वारमा पण जह--जेबी रीते बावीस-बावीस
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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