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________________ ॥ उपपात-च्यवनद्वारवर्णनम् ॥ द्वारमा वर्णव्या प्रमाणे जाणवू तथा दंडकमां अनधिकारी एवा सम्मू० तिर्यचपंचे तथा सम्मू० मनुष्यने पण स्थावरवत् ३ उपयोग जाणवा, ॥ इति उपयोगदारं ॥ अवतरण-आगाथामां दरेक दंडके उपपातद्वार अने च्यवन द्वार ए बे द्वार कहे छे. संखमसंखा समए, गब्भतिरिविगलनारयसुरा य । मणुया नियमा संखा, वणणंता थावर असंखा ॥२५॥ संस्कृतानुवादः संख्येया असंख्येयाः समये गर्भजतियंगविकलनारकसुराश्च मनुजा नियमात् संख्येया वना अनंताःस्थावरा असंख्येयाः२५ ॥ शब्दार्थः॥ संख-संख्याता मणुआ-मनुष्यो असंखा-असंख्याता नियमा-निश्चयथी समए-एक समयमां संखा-संख्याता गन्मतिरि-गर्भजतियचो वण-वनस्पति विगल-विकलेन्द्रियो अणंता-अनंत नरय-नारको थावर-स्थावरो सुरा-देवो असंखा-असंख्याता य-अनो गाथार्थः-गर्भजतियंच-विकलेन्द्रिय-नारक-अने देवो एक समयमां संख्यात अथवा असंख्यात ( उपजे अने चवे ) मनुष्यो निश्चय संख्याता ज, वनस्पतिकायजीवो अनंत, अने स्थावरो अ. संख्यात ( उपजे अने चवे छे ) ....
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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