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________________ ॥ उपयोगद्वारवर्णन ॥ (५७) गाथाथः – मनुष्योने १२ उपयोग, नारक -तिर्यच--अने देवोने ९ उपयोग, बे विकलेन्द्रियने ( द्वीन्द्रिय- त्रीन्द्रियने ) ५ उपयोग, चउरिन्द्रियोने ६ उपयोग, अने स्थावरने ३ उपयोग छे. उपयोग होय एम सामान्यथी कहीं पण विशेषतः आ प्रमाणे विस्तरार्थ -- हवे आ गाथामां कया दंडके केटला उपयोग होय ते दर्शावतां वओगा मणुएसु बारस - मनुष्योने १२ उपयोग होय एम सामान्यथी कां अने विशेषतः आ प्रमाणे अनेक मनुष्योनी अपेक्षाए अथवा एक मनुष्यने भिन्न काळनी अपेक्षाए मनुष्यने १२ उपयोग छे. अने एक मनुष्यने समकाळे तपासीए तो २-४-५-६-७ उपयोग लब्धिरूपे होय, त्यां समकाळे केवळ ज्ञान अने केवळदर्शन ए वे उपयोग श्री सर्वज्ञने लब्धिरूपे होय, तथा मति - श्रुतज्ञान अथवा मति-श्रुत अज्ञानसहित चक्षु अने अचक्षुदर्शन गणतां समकाळे ४ उपयोग होय, त था ३ अज्ञान अने चक्षु - अचक्षुदर्शन गणतां ५ ' उपयोग अथवा मति - श्रुत ने मनः पर्यवज्ञानयुक्त चक्षु अचक्षुदर्शन गणतां पण ५ उपयोग, तथा मति - श्रुत--अवधिज्ञानसहित चक्षु - अचक्षु अने अवधिदर्शन गणतां ६ उपयोग तथा एमां मनः पर्यवज्ञान मेळवतां उपयोग एक मनुष्यने लब्धिभावे होय पण उपयोगरूपे न होय, उपयोग रूपे तो एक जीवने १ समये १ ज उपयोग होइ शके. नव निरय- तिरिय- देवेसु --नारको १ तिचर्येनो ? - अने दे -- बना १३ दंडक मळी १५ दंडकमां केवळज्ञान- केवळदर्शन-ने मनः पर्यवज्ञान शिवायना ९ उपयोग के कारणके मनः पर्यवज्ञान अप्रमत्तमुनिने ज उत्पन्न थाय छे, अने ममत्तादि मुनिने ज होयछे १ विभंग ज्ञानीने अवधिदर्शन न माने तो ५ पयोग अने सिद्धान्तकारने मते विभंगज्ञानीने अवधिदर्शन मानेलु छे तो ते अपेक्षाए ६ उपयोग ३ अज्ञान ने ३ दर्शन सहित थाय
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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