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________________ (९०) ॥ दंडकविस्तरार्थः 1. चित् सास्वादन सम्यक्त्व बाकी रह्ये काळ की एकेन्द्रिय थएला लब्धिपर्याप्त बादर पृथ्वीकाय-अपकाय-अने वनस्पतिकायने अपर्याप्तावस्थामां अल्पकाळ पर्यन्त सास्वादन सम्यक्त्व होते छते पण सास्वादन भावमां कार्मग्रंथिकमते ज्ञान मानेलं नही होवाथी सर्व एकेन्द्रियोने अज्ञानज होय छे, ___ नाणनाणदुविगले-सिद्धान्तकारमते सास्वादन सम्यक्त्वे ज्ञान मान्यु छे अने केटलाक विकलेन्द्रियोने अपर्याप्तावस्थामा सास्वादन सम्यक्त्व मानेलं होवाथी सम्यक्त्ववाळाने २ ज्ञान अने बाकीनाओने २ अज्ञान होय छे अने कर्मग्रन्थकारने मते सास्वादन सम्यक्त्व छतां पण अज्ञानज कयुं छे. मणुए पण नाण ति अनाणा-गर्भज मनुष्योमा ५ ज्ञान अने ३ अज्ञान छे ते आ प्रमाणे एक जीवने समकाले १-२-3 ने ४ ज्ञानलब्धि होय छे, त्यां जे ग० मनुष्यने अवधि-मनः प०-ने केवळज्ञान न होय तेवा सम्यग्द्रष्टिओने मतिज्ञान अने श्रुतज्ञान छे, तथा अवधिज्ञान अथवा मनःपर्यवज्ञान बेमांथी कोइपण एक ज्ञान उत्पन्न थयु होय तो एक जीवने म०-श्रु०-अव० अथवा म०--श्रु-मनः० एम बे रीते ३ ज्ञान होय, ने जेने अवधि अने मन:प० बन्ने उत्पन्न थयां होय तो एक ग० मनुष्यने समकाळे चार ज्ञान होय, ने सर्वे केवलि भगवानने एकज केवळज्ञान होय पण मत्यादि ४ ज्ञान न होय. तथा मिथ्यादृष्टि ग० मनुष्योने विभंगज्ञानरहितने बे अज्ञान अने विभंगज्ञान सहितने ३ अज्ञान, ए प्रमाणे एक ग. मनुने समकाले १ अथवा ३ अज्ञान छे, इति ज्ञानाज्ञानद्वारद्वयं, अवतरण-आ गाथामां १५ योगनां नाम कहे छे.
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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