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॥ लेश्या-इन्द्रिय-समुद्घातद्वारवर्णनमः ॥ (८९) पिक देवोने पण सम्यक्त्व होवाथी ३ ज्ञान अने मिथ्यात्व होवाथी ३ अज्ञान होय छे, त्यां परमाधामीने पूर्वनी सोबतवाला देवना उपदेशादि प्रयत्नथी सम्यक्त्व थाय छे, परन्तु प्रथमथीज सम्यक्त्व होवानो संभव नथी, शेष भुवनपत्यादि देवो उत्पन्न थतां अने उत्पन्न थया बाद पण सम्यत्तव युक्त थवाथी ३ ज्ञानवाळा होय अने मिध्यादृष्टि भवनपत्यादि देवोने ३ अज्ञान होय. ए प्रमाणे देवोमा ३ ज्ञान अने ३ अज्ञान क्रया बाद हवे तिर्वचोमा कहे छे, :..
तिर्यंचमां पण ३ ज्ञानने ३ अज्ञान छे. अहिं तिर्यंच सामान्ये कहेल छे तो पण गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रियोज जाणवा, तेओने पर्याप्त अने अपर्याप्त अवस्थामां पण सम्यत्व होवाथी३ ज्ञान होयले अने मिथ्यादृष्टिओने : अज्ञान होय छे. अहिं तिर्यंचने अपर्याप्त अवस्थामां पण मनुष्यवत् परभवथी साथे लावेलु अवधि अने विभंगज्ञान होवु केटलाएक मानेछे. अने केटलाएक नहि मानता होवाथी बे मत छे. परन्तु विशेषत: तो तिर्यंचोने गुणप्रत्ययिक होवाथी व्रत तपश्चर्यादि गुणथी पर्याप्त अवस्थामा अवधि अने विभंग उत्पन्न . थाय छे. ए प्रमाणे गर्भज तिर्यचपंचेन्द्रियमा ३ ज्ञान अज्ञान कह्यां
नारकोमा सातमी पृथ्वीना अपर्याप्त नारक सिवायना १३ नारकोमा सम्यक्त्व होवाथी ३ ज्ञान अने मथ्यात्व होवाथी ३ अज्ञान छे, अने सातमी पृथ्वीना अपर्याप्त नारकने तो केवळ मिथ्यात्वज होवाथी ३ अज्ञान होय पण ज्ञान न होय. नारकोने भवप्रत्ययिक अवधि अने विभंग होवाथी त्यां उत्पन्न थती वखते ए ज्ञान पामे छे.
थिरे अनाणदुगं-स्थावरने २ अज्ञान ज छे, अहिं सिद्धान्तने मते अल्प पण सम्यक्त्वांश नही होबाथी २ अज्ञान जाणवां, अने कर्मग्रंथकारनेमते पण जेओ पूर्वभवमांथी उपशम सम्यक्त्ववमतां कि