SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ इन्द्रिय-समुद्घातबारवर्णनम् ॥ (२७) - अपर्याप्त गर्भज मनुष्यने मात्र अचक्षु दर्शनज होय माटे. समकाळे १ प्रकारचं, अथवा श्री सर्वज्ञने फक्त केवलदर्शनज होय माटे १ प्रकारचें दर्शन छे, तथा अवधिज्ञान अने केवळज्ञानरहित एक ग० मनुष्यने समकाळे चक्षु ने अचक्षुदर्शन लब्धि होय माटे में प्रकारे, अने अवधिज्ञानी मनुष्यने त्रणे दर्शनेलब्धि होय, एप्र. माणे १-२-३ दर्शनलब्धि समकाळे होय पण ४ लब्धि न होय, तथा एक समये एकज दर्शनोपयोग तो दरेक जीव माने जाणवी सेसेसु तिगं तिगं भणियं-शेष १५ दंडकमां ऋण त्रण दर्शन कह्यां छे, त्यां देवना १३ दंडक अने नारकनो १ दंडक ए १४ दंडकमां तो दरेक देवने अने दरेक नारकने अपर्याप्तपणामां अचक्षु अने अवधिदर्शन बे होय अने पर्याप्तपणामां दरेक देव नारकने त्रणे दर्शनलब्धि छे, परंतु अहिं एटलो अपवाद छे के पूर्व भवमांथी सम्मृच्छिम तिर्यंच पंचेन्द्रिय जो देवपणे उत्पन्न थयो होय तो ते देवने अपर्या० अवस्थामा अवधिज्ञान न होय माटे अवधिदर्शन पण न होय एम जाणवू.. तथा गर्भज तियेचमा अचक्षुदर्शन ने चक्षुदर्शन तो चतुरिन्द्रियवत् अने अवधिदर्शन ग० मनुष्यवत कोइकनेज जाणवू.० तथा दंडकमां अनधिकारी सम्मू० तिर्यंच पंचेन्द्रियने अचक्षु तथा चक्षुदर्शन चतुरिन्द्रियवत् जाणवू, अने सम्पू० मनुष्यने मात्र अचक्षुदर्शनज होय छे कारण के ए जीवो अपर्याप्त अवस्थामांज मरण पामे छे.. ॥ इति दर्शनद्वारम् ॥ अवतरण-आ गाथामां सर्व दंडके ज्ञानद्वार कहे छे. - ॥ मूळ गाथा २०॥ अन्नाणनाणतियतिय, सुरतिरिनिरए थिरे अनाण दुर्ग।
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy