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________________ स्थावरजीवोने दरेकने रस्तामां तथा उत्पत्तिस्थाने उत्पन्न थयाबाद इन्द्रियपर्याप्ति समाप्त न थाय त्यां सुधी लब्धिरूप अचक्षु दर्शन, ने इन्द्रिय पर्याप्तिए पर्याप्त थलाने स्पर्शनेन्द्रियरूप अचक्षुदर्शन छ, तथा दीन्द्रियने पण पूर्वभवमाथी आवतां मार्गमा अने उत्पत्तिस्थाने इन्द्रियपर्याप्ति समाप्त न थाय त्यां सुधी लब्धि रूप अचक्षुदर्शन, अने इन्द्रिय पर्याप्ति पूर्ण थया वाद स्पर्शनेन्द्रिय तथा रसनेन्द्रिय संबंधी बे प्रकारचें अचक्षुदर्शन छे. तेम त्रीन्द्रिय जीवने द्वीन्द्रियवत् अचक्षुदर्शन जाणवू पण विशेष ए के इन्द्रिय पर्याप्ति पूर्ण कर्या बाद स्पर्शन संबंधि-रसनासंबंधि-ने घ्राणेन्द्रिय संबंधि एम ३ प्रकारचें अचक्षुदर्शन जाणQ. चउरिदिसु तदुगं-चतुरिन्द्रिय जीवने ते बे एटले चक्षु अने अचक्षु एम बे दर्शन जाणवां. त्यां चतुरिन्द्रियने श्रीन्द्रियवत् लब्धिरूप-विगेरे ४ प्रकारनां अचक्षुदर्शन छे, अने स्वयोग्य पर्या. प्तिओ पूर्ण थया बाद 'पर्याप्तावस्थामां चक्षुदर्शन कहेवू. ए भावार्थ सुए भणियं-सिद्धान्तमां को छे. मणुआ चउदंसणिणो-मनुष्यो ४ दर्शनवाला छे, तेमां सर्व सामान्य मनुष्योने अचक्षुदर्शन तथा चक्षुदर्शन चतुरिन्द्रियवत् जागवं, ने केटलाक ग० मनुष्यो के जेओने अवधिज्ञान अने केवलज्ञान होय तेवा मनुष्योने अवधिदर्शन तथा केवळदर्शन होइ शके पण सर्वने नहि. तेमज एक मनुष्य समकाळे १-२ ने ३ दर्शन लब्धिवाळो होय पण दर्शनोपयोग तो एक मनुष्यने समकाळे एक ज होय, त्यां १-२-३ दर्शन समकाळे लब्धिरूपे होय ते आ प्रमाणे १ चक्षुदर्शन सर्व पर्याप्तिओना समाप्तिरूख कारण पर्याप्त वस्थामांज होय पण इन्द्रियपर्याप्ति पूर्ण कर्या बाद तुर्तहोय नहि.
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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