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________________ (चय के० ) चैव, एटले निश्चे ( गढ़ति के० ) गबंति एटले जाय बे. एम देवताना तेर दमकने विषे गति कही ॥ ३१ ॥ हवे ए देवताना तेर दंडकनी आ गति कहे छे. संखानपऊपणिदि,-तिरिनरेसु तदेव पजत्ते ॥ जूदगपत्तेयवणे, एएसु चिय सुरागमणं ॥३॥ गाथा ३२ मीना छुटा शब्दना अर्थ. संग्खाउ-संख्याता वर्षना आयु- भु-पृथिवोकाय. . प्यवाला. दग-अपकाय. पज्जपणिदि-पर्याप्ता पंचेंद्रिय. पत्तेयवणे-प्रत्येक वनस्पतिकाय.. तिरि-तिर्यच. एएस-ए (पांच ) ने विषे. नरेसु-मनुष्यने विषे.. [च्चिय-निश्चे. तहेव-तेमज. सुरागमणं-देवतार्नु आगमन पज्जत्ते पर्याप्ता. (उपजq.) विस्तारार्थः-असंख्याता वर्षना आयुष्यवाला युगलिया टालीने शेष ( संखाउ पज्जपणि दितिरिनरेसु के ) संख्यातायुः पर्याप्त पंचेंद्रियतिर्यग्नरयोः, एटले संख्याता वर्षना थायुवाला एवा पर्याप्तपंचेंघिय एटले पर्याप्ता पंचेंद्रिय एवा एक तिर्यच अने बीजा म
SR No.022340
Book TitleDandak Tatha Laghu Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages174
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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