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४ विस्तारार्थः-(मणुाण के० ) मनुष्याणां, एटसे मनुष्यना एक दंगकने विषे (दीहकालिय के०) दीर्घकालिकी, एटले एक दीर्घकालिकी संज्ञा होय, तथा बीजी (दिहीवाठवएसिया के० ) दृष्टिवादोपदेशिकी, एटले दृष्टिवादोपदे शिकी संज्ञा होय, ए बीजी संज्ञा. वाळा पण (केवि के0) केऽपि, एटले कोईएक दायोपशमिक आदिसमकित सहित सम्यग्दृष्टि चौदपूर्वधर प्रमुख होय, अनेत्रीजी हेतूपदेशिकी संज्ञा जे पूर्वे विकलेंद्रियना त्रण दमके कही , ते संज्ञा दीर्घ कालनी संझामांहे अंतर्जूत , माटे अहींयां जूदी कही नथी. ए त्रण संज्ञानुं द्वार कह्यु. ___हवे बावीशमुं गतिहार तथा तेवीशमुं आगतिछार ए बे छार साथे कहे - ___(पऊपण तिरि मणु के० ) पर्याप्तपंचेंद्रियतिर्यग्मनुष्याः, एटले पर्याप्ता पंचेंद्रिय तिर्यच अने पर्याप्ता मनुष्य ए बे दमकना जीव ( चनविहदेवेसु के0 ) च. तुर्विधदेवेषु, एटले चतुर्विधदेवोने विषे अर्थात् जवनपत्यादिक चार प्रकारना देवोसंबंधी तेर दमकने विषे