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________________ ६॥ श्रुतवज्ञान, चहुदर्शन अने अचकुदर्शन, ए चार उपयोग होय; तथा सिद्धना जीवोने एक केवलज्ञान, बी. रॉ केवलदर्शन, ए बे उपयोग होय ॥२५॥ ए चोवीश दमके पंदरमुं उपयोगहार का. हवे सोलमुं प्रत्येक दमकने विषे एक समयमा केटला जीव आवी उपजे, तेनी संख्यानुं धार तया सत्तरमुं प्रत्येक दंमकमांथी एक समयमा केटला जीव च्यवे, तेनी संख्यान छार, ए बे साथे कहे . संखमसंखा समए, गन्नयतिरिविगल नारयसुरा य॥मणु नियम संखा, वणऽणंता थावर असंखा ॥२३॥ गाथा २३ मीना छुटा शब्दना अर्थ. संखमसंखा-संख्याता अनेमणुआ-मनुष्यो. . असंख्याता. |नियमा-नियमथी, निश्चे. समए-समयने विषे. संखा-संख्याता. गम्पयतिरि-गर्भज तिर्यच. वण-वनस्पतिकाय. विगल-विकलेंद्रिय. अणता-अनंता. नारय-नारकी. थावर-स्थावर. मुरा-देवता. असंखा-असंख्याता. य-अने.
SR No.022340
Book TitleDandak Tatha Laghu Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages174
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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