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________________ विस्तारार्थः-(गप्पयतिरि विगल नारय सुरा केय) गर्भजतिर्यग्विकलनारक सुराः, एटले आ चौदराज लोकमां पण गर्भज तिर्यचनो एक ईमक तथा विकलें. प्रियना त्रण 'दंमक तथा नारकीनो एक दंमक अने देवताना तेर दमक, ए सर्व मली अढार दमकना जीव ते ( संखमसंखा के० ) संख्याताऽसंख्याताः, एटले एक, बे, त्रण, दश, वीश, एम संख्याता अथवा असंख्याता (समए के०) समये, एटले एक समयमांहे उपजता लाने (य के०) च, एटले तथा (मणुया के० ) मनुष्याः, एटले मनुष्यना एक दमकना जीव (नियमा के०) नियमात्, एटले नियमथकी एक समयने विषे (संखा के० ) संख्याताः, एटले संख्याता जीव उपजता लाने, ए गर्नज मनुष्य आश्रयी जाणवू. तथा पांच स्थावरमांहेला (वणऽणंता के० ) वनानंताः, एटले वनस्पतिकायना दमकना अनंता जीव एक समयमा उपजे, तथा एक वनस्पतिकाय विना बाकीना चार ( थावर के ) स्थावराः, एटले स्थावरना चार दमकना जीव एक समयमां (असंखा के०) असंख्याः , एटले असं.
SR No.022340
Book TitleDandak Tatha Laghu Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages174
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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