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थिरे--स्थावरने विषे विगले-विकलेंद्रियने विषे. अन्नाणदुर्ग-चे अज्ञान मणुए-मनुष्यने विषे. नाणन्नाण-ज्ञान अने अज्ञान. पणनाण-पांच ज्ञान अने.
तिअनाण-त्रण अज्ञान. __विस्तारार्थः-(सुर तिरिनिरये के० ) सुरतिर्यग्निरये, एटले देवताना तेर दमक तथा पंचेप्रिय तिर्यचनो एक दंमक अने नारकीनो एक दमक एवं पंदर दमकने विषे मिथ्यादृष्टि जीवने एक मतिअज्ञान, बीजु श्रुतअज्ञान अने त्रीजु विनंगज्ञान, ए त्रण अ. झान होय; अने सम्यग्दृष्टि जीवने एक मतिझान, बीजु श्रुतझान अने त्रीजु अवधिज्ञान, ए त्रण ज्ञान होय. ए रीते (अन्नाणनाणतियतिय के०) अज्ञानशान त्रिक त्रिके, एटले अज्ञान त्रण अने ज्ञान पण त्रण होय. तथा एकेद्रियादिक (थिरे के०) स्थावरे, एटसे स्थावर जीवोना पांच दंगकने विषे (अनाणगं के०) अज्ञानकिं, एटले एक मतियज्ञान अने बीजुं श्रुतअज्ञान, ए बे अज्ञान होय, केमके स्थावरने समकित नश्री, माटे ज्ञान पण नथी जो के सिद्धांतना मते पृ