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________________ अने चो) केवल, ए (चउदंसणिणो के ) च. तुदर्श निनः एटले चारे दर्शनवाळा होय. ए नव दम के दर्शन विवरीने कह्यां. (सेसेसु के०) शेषेषु, एटले शेष रह्या जे तेर देवताना दंमक, एक नारकीनो अने एक पंचेंद्रिय तिर्यचनो ए पंदर दंमकोने विषे एक चहु, बीजं अचहु अने त्रीजु अवधि, ए (तिगं तिगं के०) त्रिकं त्रिकं, एटले त्रण त्रण दर्शन सिद्धांतोमा (जणि. यं के0) जणितं, एटले कह्यां . ए अगीयारमुं दर्शनछार कर्जा ॥१५॥ हवे बारमुं पांच ज्ञाननुं अने तेरमुं त्रण अज्ञानतुं • ए बे द्वार साथे कहे छे. अन्नाण--नाण--तियतिय, सुर--तिरि-निरए थिरे अनाणदुगं॥ नाणन्नाण दु विगले, मणुए पण नाणतिअनाणा ॥२०॥ गाथा २० मीना छुटा शब्दना अर्थ. अन्नाण-अज्ञान. सुर-देवता. नाण-ज्ञान. तिरि-तिर्यच. तियतिय-त्रण त्रण निरए-नारकीनेविषे.
SR No.022340
Book TitleDandak Tatha Laghu Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages174
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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