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६४ वी, अप अने वनस्पतिकायमा समकितने वमता एवा देवोनी उप्तत्ति थाय , त्यारे सास्वादन होवाथी तेओने मति अने श्रुतझान होय , परंतु तेनो अहीं अधिकार नथी. तथा (विगले के०) विकले, एटले विकलेंप्रिय जीवना त्रण दमकने विषे (मुके०) हे, एटले बे (नाणन्नाण के०) ज्ञानाझाने, एटले ज्ञान अने अज्ञान होय. एटले विकलेंद्रियमां नवांतरथी जे जीव सास्वादन समकित लाव्यो होय, तेने अपर्यातावस्थाएज एक मतिझान अने बीजु श्रुतझान, ए बे ज्ञान होय; अने बीजा जीवोने तो सर्व अवस्थाए एक मतिअज्ञान अने बीजु श्रुतअंडान, ए बे अज्ञानज होय; अने ( मणुए के०) मनुष्ये, एटले मनुष्यना एक दमके तो ( पणनाण त्तियनाणा के ) पंचज्ञान व्यझाने, एटले मतिज्ञानादिक पांचे ज्ञान होय, तया मतिअज्ञानादिक त्रण अज्ञान पण होय. ए समस्त मनुष्य या श्रयी जाणवू. ए चोवीश दंगके बारमु झानहार अने तेरमुं अज्ञानद्वार, ए बे साथे कह्यां ॥ ॥