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दृष्टि होय, तथा (यावर मिजुत्ती के०) स्थावर मिथ्याविनी, एटले स्थावरना पांच दमके तेमज संमूर्बिम मनुष्यमां पण एक मिथ्यादृष्टि होय, अने (सेस तियदिट्टी के०) शेष त्रिदृष्टि, एटले शेष एटले पूर्वोक्त आठ दमक मूकीने शेष रह्या जे एक नारकी, एक गर्भज तिर्यच, एक गर्भज मनुष्यनो अने तेर देवताना मलीने सोल दमक, तेने विषे सम्यक्त्व, मिथ्यात्व अने मिश्र, ए त्रणे द्रष्टि होय. एमां पण नव ग्रैवेयके एक सम्यक्त्व अने बीजी मिथ्यात्व, ए बे द्रष्टिज लाने तथा पांच अनुत्तर विमाने एक समकित द्रष्टि लाने. तथा संमुर्बिम तिर्यचने एक सम्यक्त्व अने बीजी मिथ्यात्व, ए बे द्रष्टि लाने. ए दशमुं द्रष्टिहार का ।१७।
हवे अगीयारभु चार दर्शन द्वार कहे छे. थावरबितिसु अचरकु, चरिंदिसु तदुगं सुए नणियं ॥ मणुआ चनदंसणिणो, सेसेसु तिगं तिगं नणियं ॥ १० ॥