SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ग्रंथकर्ताओं का परिचय । श्रीवृहत्स्वयंभूस्तोत्र, रत्नकरंडश्रावकाचार, आप्तमीमांसा और युक्त्यनुशासन-इन ग्रंथों के कर्ता आचार्यप्रवर श्री समन्तभद्रस्वामी हैं जो विक्रम संवत् की दूसरी शताब्दी में हुए हैं । इनके बनाये हुए गंधहस्तिमहाभाष्य, जिनसत्तालङ्कार, विजयधवल टीका, तत्वानुशासन, चिन्तामणि व्याकरण, जिनशतक आदि ग्रंथ विद्यमान हैं। . . समाधिशतक और इष्टोपदेश-इनके कर्ता श्री देवनंदि (फूज्यपाद) स्वामी हैं । जो विक्रम की चौथी शताब्दी में हुए हैं। इनके बनाये हुए पश्चाध्यायी ( जैनेंद्र व्याकरण सूत्र) सिद्धप्रियस्तोत्र, सर्वार्थसिद्धि, श्रावकाचार, पूजाकरुप, जिनसंहिता आदि ग्रंथ हैं। __ तत्वार्थसार, पुरुषार्थसिद्ध्युपाय और समयसारकलशा-इनके कर्ता श्री अमृतचन्दसूरि हैं जो विक्रम की दशवीं शताब्दी में हुए हैं। इनके बनाये समयसार टीका,
SR No.022338
Book TitleDigambar Jain Granth Bhandar Kashi Ka Pratham Gucchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Choudhary
PublisherPannalal Choudhary
Publication Year1926
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy