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________________ प्रकाशक का निवेदन । __ .. इस प्रथमगुच्छक में प्रकाशित पहिले के १४ ग्रंथ बंबई के सुप्रसिद्ध निर्गयसागर प्रेस द्वारा सनातन जैन ग्रंथमाला के प्रथमगुच्छक में प्रकाशित हुए थे । इस समय उसकी कापी समात्र होजाने तथा गुच्छक की उपयोगिता के कारण यह गुजछक प्रकाशित किया जाता है। इसमें उक्त १५ प्रन्यों के अतिरिक्त पात्रकेसरिस्तोत्र, इष्टोपदेश, द्वात्रिंशतिका, सर्वावस्तवन और अन्त में श्री पार्श्वनाथस्तोत्र भी प्रकाशित हैं। यह गुच्छक नित्य पाठ संग्रह के समान ही नित्य पाठ करने योग्य गुटका है । अतएव इसमें मूलग्रंथ ही प्रकाशित किये गये हैं। आशा है कि पाठक इसे पसंद करेंगे। - इसके प्रकाशन में जहांतक होसका है शुद्धता पर अधिका ध्यान रक्खा गया है तौभी जो अशुद्धियां रहगई हैं वे अन्त में शुद्धिपत्र में प्रकाशित हैं। पाठक उन्हें सुधार लेवें। इस महत्वपूर्ण कार्य में हमें पं० फूलचन्दजी शास्त्री (श्री स्याद्वाद महाविद्यालय काशी के धर्माध्यापक) और पं० आनन्दकुमारजी शास्त्री से अधिक सहायता मिली है जिसके लिये हम उनके अत्यन्त आभारी हैं। विजयादशमी ) निवेदकव० सं० २४५१ १ भदैनी- बनारस सिटी। J. पन्नालाल चौधरी।
SR No.022338
Book TitleDigambar Jain Granth Bhandar Kashi Ka Pratham Gucchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Choudhary
PublisherPannalal Choudhary
Publication Year1926
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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