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________________ 238 षट्खण्डागम जीवस्थान, धवलाटीका, 1.1.15, पृष्ठ 180 ३०० व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र, सूत्र 3.3.154 ३०१. गोम्मटसार जीवकाण्ड, गाथा 51... ३०२ षट्खण्डागम धवला टीका, जीवस्थान, 1.1.16, पृष्ठ सं. 181 ३०३. लोकप्रकाश, 3.1167-1168 ३०४. पंचसंग्रह भाग 1 योगोपयोग मार्गणा अधिकार, गाथा 16-18. पृष्ठ सं. 144 ३०५ (क) लोकप्रकाश, 3.1186 (ख) प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा, साध्वी डॉ. दर्शनकला श्री, प्रथम अध्याय, पृष्ठ सं. 16 गुणस्थान सिद्धान्त एक विश्लेषण, प्रो. सागरमल जैन, अध्याय षष्ठ पृष्ठ सं. 62 . (क) गोम्मटसार जीवकाण्ड, गाथा 51-52 ३०६ ३०७ (ख) षट्खण्डागम धवलाटीका, जीवस्थान, 1.1.16, पृष्ठ 184 ३०८. सम्यक्त्वापेक्षया तु क्षपकस्य क्षायिको भावः, दर्शनमोहनीयक्षयमविधाय क्षपकश्रेण्यारोहणानुपपत्तेः । उपशमकस्य पशमिकः क्षायिको वा भावः, दर्शनमो हो पशमक्षयाभ्यां विनोपशमश्रेण्यारोहणानुपलम्भात् ' - षट्खण्डागम जीवस्थान, धवलाटीका, 1.1.17, पृष्ठ 183-184 लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन ३०६ (क) लोकप्रकाश, 3.1187 (ख) समानसमयावस्थितजीवपरिणामानां निर्भेदेन वृत्तिः निवृत्तिः । अथवा निवृत्तिः व्यावृत्तिः न विद्यते निवृत्तिर्येषां तेऽनिवृत्तयः । षट्खण्डागम धवलाटीका, जीवस्थान 1.1.17, पृष्ठ सं. 184-185 ३१० (क) लोकप्रकाश, 3.1188 (ख) साम्परायाः कषायाः, बादराः स्थूलाः बादराश्च ते सम्परायाश्च बादरसाम्परायाः ।' -षट्खण्डागम धवलाटीका, जीवस्थान, 1.1.17, पृष्ठ सं. 185 ३११. लोकप्रकाश, 3.1191 ३१२. लोकप्रकाश, 3. 1192 ३१३. लोकप्रकाश, 3.1193 ३१४. लोकप्रकाश, 3. 1194 ३१५. (क) लोकप्रकाश, 3.1195 (ख) पंचसंग्रह भाग 1, योगोपयोगमार्गणा अधिकार, गाथा 16-18, (ग) गुणस्थान सिद्धान्त : एक विश्लेषण, प्रो. सागरमल जैन, षष्ठ अध्याय, ३१६. लोभः संज्वलनः सूक्ष्मः शमं यत्र प्रपद्यते । क्षयं वा संयतः सूक्ष्मः, सम्परायः स कथ्यते ।। कौसुम्भोन्तर्गतो रागो, यथा वस्त्रे तिष्ठते। सूक्ष्मः लोभगुणे लोमः शोध्यमानस्तथा तनुः ।। पंचसंग्रह, भाग 1 गाथा 43-44 ३१७ (क) लोकप्रकाश, 3. 1197 - 1198 (ख) षट्खण्डागम धवला टीका, जीवस्थान, 1.1.19, पृष्ठ 189 (ग) उपशांताः साकल्येनोदयाऽयोग्याः कृताः कषायनोकषायाः येनासावुपशांतकषायः - गोम्मटसार जीवकाण्ड कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वत्प्रदीपिका, गाथा 61, पृष्ठ सं. 126 ३१८. लोकप्रकाश, 3.1199-1200 ३१६. लोकप्रकाश, 3.398, पृष्ठ सं. 134 ३२०. लोकप्रकाश, 3.1201 ३२१. लोकप्रकाश, 3.1201 ३२२. लोकप्रकाश, 3.1215
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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