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जीव-विवेचन (3)
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२१०. लोकप्रकाश, 4.131 से 133 और 5.314 २११. लोकप्रकाश, 6.49 और 50 २१२. लोकप्रकाश, 6.181 से 183 २१३. लोकप्रकाश, 7.112 से 114 २१४. लोकप्रकाश, 7.16 २१५. लोकप्रकाश, 8.92 और 93 २१६. लोकप्रकाश, 9.20 और 21 २१७. लोकप्रकाश, 3.601 २१८. लोकप्रकाश, 3.600 २१६. लोकप्रकाश, पृष्ठ सं. 177 से उदधृत २२०. लोकप्रकाश, 3.602 २२१. गुणस्थान सिद्धान्त : एक विश्लेषण, पंचम अध्याय, पृष्ठ सं. 46 २२२. लोकप्रकाश, 3.599-600 २२३. लोकप्रकाश, 3.603 २२४. गुणस्थान सिद्धान्त : एक विश्लेषण, पंचम अध्याय, पृष्ठ 48 २२५. लोकप्रकाश, 3.628 २२६. समवायांग सूत्र, चतुर्दशस्थानक, समवाय, सूत्र 95 पृष्ठ सं. 41 २२७. 'मिच्छादिट्ठी सासायणे य तह सम्ममिच्छादिट्ठी य।
अविरसम्मटिट्ठी विरयाविरए पमत्ते य।। तत्ते य अप्पमत्तो नियट्टिअनियट्टिबायरे सुहुमे। उवसंत खीणमोहे होइ सजोगी अजोगी य।।-नियुक्तिसंग्रह (आवश्यकनियुक्ति पृ. 149) भद्रबाहु विरचित, संपादक विजयजिनेन्द्रसूरि, प्रकाशक- श्री हर्ष
पुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला, लाखाबावल, शान्तिपुरी, सौराष्ट्र २२५. आवश्यकचूर्णि, उत्तरभाग, पृ. 133-136, जिनदासगणि महत्तर, ऋषभदेव केशरीमल संस्था,
रतलाम, सं. 1929 २२६. कषायपाहुड, 1.1 की व्याख्या। २३०. षट्खण्डागम धवला टीका, संतप्ररूपणानुयोगद्वार, 1.1.8. पृष्ठ 161 २३१. मूलाचार, भाग 2, गाथा 1197-1198 २३२. भगवती आराधना, गाथा 1 पर अपराजितसूरिकृत टीका २३३. समयसार, प्रथम अधिकार, गाथा 55 की टीका २३४. सर्वार्थसिद्धि भारतीय ज्ञानपीठ, 9.1, पृष्ठ सं. 318-320 २३५. तत्वार्थराजवार्तिक, सं. प्रो. महेन्द्रकुमार जैन, भारतीय ज्ञानपीठ, भाग 2,9.1, पृष्ठ 588 २३६. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, सं.- पं. मनोहरलाल, रामचन्द्रनाथारंगजी, मुम्बई,9.1, पृष्ठ 486 २३७. लोकप्रकाश, 3.1132 २३८. सव्व जीवाणं वि य, अक्खरस्स अणंतमो भागो निच्च उग्घाडियो चिट्ठइ।
जइ पुण सो वि आवरिज्जा; तेण जीवो अजीवत्तणं पाउणिज्जा।।-नन्दीसूत्र 75 २३६. लोकप्रकाश, 3.1277-1278 २४०. लोकप्रकाश, 3.1279-1280 २४१. लोकप्रकाश, 3.1281-1286 २४२. लोकप्रकाश, 3.1288-1290 २४३. लोकप्रकाश, 3.1291 २४४. लोकप्रकाश, 3.1291