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जीव-विवेचन (2)
२२५. लोकप्रकाश, 3.406 २२६. लोकप्रकाश, 4.123 २२७. लोकप्रकाश, 5.314 २२८. लोकप्रकाश, 8.87 २२६. लोकप्रकाश, 9.17 २३०. जीवाजीवाभिगम सूत्र, प्रथम प्रतिपत्ति, नैरयिक वर्णन, पृष्ठ 77 २३१. लोकप्रकाश, 3.407, 3.408 और 3.123 के व्याख्या में उद्धृत २३२. (क) लोकप्रकाश, 6.37 (ख) जीवाजीवाभिगम सूत्र, प्रथम प्रतिपत्ति, सूत्र 28, 29 व 30 २३३. लोकप्रकाश, 6.171 २३४. लोकप्रकाश, 7.14 २३५. लोकप्रकाश, 6.171 २३६. लोकप्रकाश, 7.106 २३७. कम्मं कसं भवो वा कसमाओ सिंजओ कसाया तो। २३८. कसमाययंति व जओ गमयंती कसं कसाय त्ति। २३६. आओ व उवादाणं तेण कसाया जओ कसस्साया।-विशेषावश्यक भाष्य, भाग 1, गाथा 1228 और
1229 २४०. (क)सुखदुःखबहुसस्यकर्मक्षेत्रं कृषन्तीति कषायाः।-षट्खण्डागम पुस्तक संख्या1/1,1,4.पृष्ठ 142 (ख) सुहदुःखसुबहुसस्सं कम्मक्खेत्तं कसेदि जीवस्स।
संसारदूरमेरं तेण कसाओ त्ति णं वेंति।-गोम्मटसार जीवकाण्ड,गाथा 282 २४१. कषं संसारकान्तारमयन्ते यान्ति यैः जनाः ते कषायाः।-लोकप्रकाश, 3.409 २४२. कषायपाहुड 1/1.1. 13-14 २४३. (क) लोकप्रकाश, 3.409 (ख) षट्खण्डागम धवला पुस्तक 1/1,1.111 (ग) सर्वार्थसिद्धि 8वां
अध्याय सूत्र 9, पृष्ठ 751 कषायाः क्रोधमानमायालोभाः २४४. (क) चत्वारोऽपि चतुर्भेदाः स्युस्तेऽनन्तानुबन्धिनः ।
अप्रत्याख्यानकाः प्रत्याख्यानाः संज्वलना इति।-लोकप्रकाश 3.413
(ख) तत्त्वार्थसूत्र अध्याय 8, सूत्र 9। २४५. 'हास्यरतिशोकभयजुगुप्सास्त्रीपुन्नपुंसकवेदा। -तत्त्वार्थ सूत्र 8, सूत्र 9 २४६. (क) लोकप्रकाश, 3.410 'क्रोधाऽप्रीत्यात्मको (ख) षट्खण्डागम धवला पुस्तक 1,/1,1.111 २४७. (क) मानोऽन्येऽा स्वोत्कर्षलक्षणाः' -लोकप्रकाश, 3.410 (ख) रोषेण
विद्यातपोजात्यादिमदेनवान्यस्यानवनतिः' -षट्खण्डागम 1/1.1.111 २४८. (क) 'मायान्यवंचनारूपा-लोकप्रकाश, 3.410 (ख) निकृतिर्वञ्चना मायाकषायः -षट्खण्डागम
1/1.1.111 २४६. (क) 'लोभस्तृष्णाभिगृध्नुता'-लोकप्रकाश, 3.410 (ख) 'गर्हाऽकाङ्क्षा लोभः'-षट्खण्डागम
1/1,1,111 २५०. लोकप्रकाश, 3.417 २५१. विशेषावश्यक भाष्य, भाग 1, गाथा 1231 की व्याख्या से उद्धृत।