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जीव-विवेचन (2)
163 १०२. द्रष्टव्य (क) पंचसंग्रह प्राकृत अधिकार, 1.142-143
(ख) गोम्मटसार जीवकाण्ड, भाग 2, गाथा 489 १०३. कर्मग्रन्थ, भाग 4, भूमिका से उद्धृत १०४. स्थानांग, 1.51 सूत्र की टीका। १०५. तत्त्वार्थराजवार्तिक, 2.6 १०६. लोकप्रकाश, 3.284 "कृष्णादिद्रव्य साचिव्यात् परिणामो य आत्मनः ।
, स्फटिकस्येव तत्रायं लेश्या शब्दः प्रवर्तते।।" १०७. उत्तराध्ययन, 34 टीका, पृ. 650 १०८. लोकप्रकाश, 3.285 १०६. षट्खण्डागम धवला टीका 1-1-4, पृ. 150 ११०. लेश्याकोश, पृ. 2 १११. लोकप्रकाश, 3.298 ११२. जयसिंहसूरि-सप्तमी संयोगजा इयं च शरीरच्छायात्मिका परिगृहयते अन्ये
त्वौदारिकौदारिकमिश्रेत्यादिभेदतः सप्तविधत्वेन जीवशरीरस्य तच्छायामेव कृष्णादिवर्णरूपां
नोकर्माणि सप्तविधां जीवद्रव्यलेश्या मन्यते तथा।-उत्तराध्ययन सूत्र, 24 अगस्त्य चूर्णि, पृ. 350 ११३. लोकप्रकाश, 3.299 ११४. लोकप्रकाश, 3.300 ११५. लोकप्रकाश, 3.301 ११६. लोकप्रकाश, 3.302 ११७. लोकप्रकाश, 3.303 ११८. लोकप्रकाश, 3.304 ११६. लोकप्रकाश, 3.311-312 १२०. उत्तराध्ययन सूत्र, 34.16-17 १२१. लोकप्रकाश, 3.305 १२२. लोकप्रकाश, 3.306 १२३. लोकप्रकाश, 3.307 १२४. लोकप्रकाश, 3.308 १२५. लोकप्रकाश, 3.309 १२६. लोकप्रकाश, 3.310 १२७. लोकप्रकाश, 3.311-312 १२८. उत्तराध्ययन सूत्र 34.18 . १२६. लोकप्रकाश, 3.361 १३०. गोम्मटसार जीवकाण्ड, गाथा 543 - १३१. लोकप्रकाश, 3.360 १३२. लोकप्रकाश, 3.362 १३३. लोकप्रकाश, 3.311-312