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लोक-स्वरूप एवं जीव-विवेचन (1)
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२५६. (अ) तत्त्वार्थ सूत्र, 2.43 तदादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुर्यः ।'
(आ) सर्वार्थसिद्धि, 2.43, पृष्ठ 142 'युगपदेकस्यात्मन....विभागः क्रियते।
(इ) राजवार्तिक 2.43, पृष्ठ 406 २५७. लोकप्रकाश, 3.118 से 121 २५८. लोकप्रकाश, 3.122 २५६. लोकप्रकाश 3.123 २६०. लोकप्रकाश, 3.124 से 125 २६१. लोकप्रकाश, 3.126 २६२. लोकप्रकाश 3.127 और 128 २६३. लोकप्रकाश, 3.129 और 130 २६४. प्रज्ञापना सूत्र, सूत्र 1535 २६५. (अ) लोकप्रकाश, 3.143 (आ) प्रज्ञापना सूत्र, 21वां पद, सूत्र 1548 २६६. (अ) लोकप्रकाश, 3.135 से 185 (आ) प्रज्ञापना सूत्र, 21वां पद, सूत्र 1546 से 1551 २६७. प्रज्ञापना सूत्र, 21वां पद, सूत्र 1552 २६८. लोकप्रकाश, 3.192 २६६. लोकप्रकाश, 3.186 २७०. अंतमुहुत्तं नरएसु होइ चत्तारि तिरियमणुएसु।
देवेसु अद्धमासो उक्कोसं विउवणा कालो।।-जीवाजीवाभिगम सूत्र में पठित लोकप्रकाश में
उद्धृत 3.189 २७१. लोकप्रकाश, 3.190 से उद्धृत २७२. लोकप्रकाश, 3.187 २७३. लोकप्रकाश, 3.187 २७४. अनादिके प्रवाहेण सर्वतैजसकामणे' -लोकप्रकाश, 3.192 २७५. द्रव्यानुयोग, प्रथम खण्ड, 14वां शरीर अध्ययन २७६. लोकप्रकाश, 3.201 से 203 २७७. लोकप्रकाश, 3.194 से 200 २७८. लोकप्रकाश, 4.94 और 95 २७६. लोकप्रकाश, 5.251 २८०. लोकप्रकाश, 6.9 २८१. लोकप्रकाश, 7.10, 6.138 और 7.50 २८२. लोकप्रकाश 8.75 और 9.8 २८३. तत्त्वार्थराजवार्तिक, 5.24 २८४. संस्थानमाकृतिः' -सर्वार्थसिद्धि 5.14 २८५. यदुदयादौदारिकादिशरीराकृतिनिर्वृतिः भवति तत् संस्थानम्। -सर्वार्थसिद्धि 8.11 २८६. 'तंस-चउरंस-वट्टादीणि संठाणाणि' -कषायपाहुड 2/2-22