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लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन २२७. लोकप्रकाश, 5.227 से 229 २२८. लोकप्रकाश, 5.230 से 234 २२६. लोकप्रकाश 5.236 २३०. लोकप्रकाश 6.20, 21 २३१. लोकप्रकाश 6.22 से 25 २३२. लोकप्रकाश, 6.121 से 137 २३३. लोकप्रकाश, 7.9, 44 से 46 और 49 २३४. स्थानांग सूत्र, द्वितीय स्थान-तृतीय उद्देशक २३५. लोकप्रकाश, 8.74 और 9.6 व 7 २३६. षट्खण्डागम धवला पुस्तक 6; 1.9-1.28 २३७. षट्खण्डागम धवला पुस्तक 14; 5.6.512 २३६. औदारिकवैक्रियिकाहारक तैजसकार्मणानि शरीराणि-सर्वार्थसिद्धि, 2.36 २३६. 'सूक्ष्मा मातापितृजाः सह प्रभूतैस्त्रिधा विशेषाः स्युः।
सूक्ष्मास्तेषां नियता मातापितृजा निवर्तन्ते।।-सांख्यतत्त्वकौमुदी, कारिका 39 २४०. लोकप्रकाश, 3.96 २४१. (अ) सर्वार्थसिद्धि. 2.36 (आ) गोम्मटसार जीवकाण्ड, गाथा 230, पृष्ठ 131 २४२. विक्रिया के प्रसिद्ध आठ भेद इस प्रकार हैं- अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य,
इशित्व एवं वशित्व। २४३. (अ) सर्वार्थसिद्धि 2.36 (आ) गोम्मटसार जीवकाण्ड, गाथा 232, पृष्ठ 132 २४४. गोम्मटसार, जीवकाण्ड गाथा 235, पृष्ठ 134 २४५. सप्त धातु- रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और वीर्य-से शरीर बनता है। २४६. लोकप्रकाश, 3.99 २४७. एक हस्तप्रमाण से तात्पर्य है- व्यवहारांगुल की अपेक्षा 24 अंगुल प्रमाण। २४८. तत्त्वार्थ वृत्ति, 2.36, पृष्ठ 224 २४६. लोकप्रकाश, 3.104 २५०. (अ) अस्मादेव भवत्येवं शीतलेश्याविनिर्गमः ।
स्यातां च रोषतोषाभ्यां निग्रहानुग्रहावितः।।-लोकप्रकाश 3.101 एवं 102
(आ) प्रज्ञापना सूत्र, 21वां पद, सूत्र 1475 २५१. लोकप्रकाश, 3.105 एवं 106 २५२. (अ) लोकप्रकाश , 3.111 (आ) तत्त्वार्थ सूत्र, 2.37 परं परं सूक्ष्मम्'
(इ) गोम्मटसार जीवकाण्ड, जीवतत्त्व प्रदीपिका, गाथा 246, पृष्ठ 381 २५३. (अ) लोकप्रकाश , 3.112 (आ) तत्त्वार्थ सूत्र, 2.38 व 39 'प्रदेशोऽसंख्येयगुणं प्राक्तैजसात्
'अनन्तगुणे परे' (इ) गोम्मटसार जीवकाण्ड, जीवतत्त्व प्रदीपिका, गाथा 246, पृष्ठ 382 २५४. लोकप्रकाश, 3.113 से 115 २५५. लोकप्रकाश, 3.115 से 117