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________________ लोक-स्वरूप एवं जीव-विवेचन (1) 111 करोड़ निन्यानवे लाख पचास हजार मानी हैएया य कोडिकोडी णवणवदीकोडिसदसहस्साइं। पण्णासं च सहस्सा सवंग्गीणं कुलाण कीडीओ।। (इ) गोम्मटसार, जीवकाण्ड में लोकप्रकाश के समान कुल संख्या गिनाई है। २१५. बावीस सत्ततिण्णि य सत्त य कुलकोडिसदसहस्साई। णेया पुढविदगागणिवाऊकायाण पडिसंखा।। कोडिसदसहस्साइं सत्तट्ठ व णव य अट्ठवीसं च । बेइंदिय तेइंदिय चउरिंदिय हरिदकायाणं ।। अद्धतेरस बारस दसयं कुलकोडिसदसहस्साइं। जलचरपक्खिचउप्पय उरपरिसप्पेसु णव होति ।। छन्वीसं पणवीसं चउदस कुलकोडि सदसहस्साई। सुरणेरइयणराणं जहाकम होई णायव्वं ।। मूलाचार, पंचाचाराधिकार, पृष्ठ 186-187, गाथा 221-224 २१६. (अ) स्थितिमतोऽवधिपरिच्छेदार्थ कालोपादानम। -तत्त्वार्थराजवार्तिक 9,8/6/42 (आ) सर्वार्थसिद्धि 9,7/22/4 स्थितिःकालपरिच्छेदः । २१७. 'स्वोपात्तस्यायुष उदयात्तस्मिन भवे शरीरेण सहावस्थानं स्थितिः। -सर्वार्थसिद्धि 4, 20/251/7 २१८. (अ) प्रज्ञापना सूत्र, 18वाँ कायस्थिति पद (आ) कायस्थितिस्तु पृथिवी कायिकादिशरीरिणाम्। तत्रैव कायेऽवस्थानं विपद्योत्पद्य चासकृत।।-लोकप्रकाश, 3.94 (इ) स्थानांगसूत्र, द्वितीय स्थान-तृतीय उद्देशक २१६. लोकप्रकाश, 3.69 २२०. (अ) लोकप्रकाश, 3.75, स्थानांग सूत्र, सप्तम स्थान (आ) मूलाचार ग्रन्थ में आयुष्य नाशक कारणों के अन्य नाम प्राप्त होते हैं जो इस प्रकार हैंविषवेदनारक्तक्षयभयसंक्लेशशस्त्रघातोच्छवासनिश्वासनिरोधैरायुषो घातः अर्थात् विष, वेदना, रक्त, क्षय, भय, संक्लेश, शस्त्रघात, उच्छवास, निश्वास का निरोध, इनसे आयु का घात होना उपक्रम है। २२१. लोकप्रकाश, 3.76, 82 से 84 तक। २२२. असंख्यायुतिर्यचश्चरमांगाश्च नारका। सुरा शलाका पुमांसोऽनुपक्रमायुषः स्मृता।।-लोकप्रकाश, 3.901 लोकप्रकाशकार ने तत्त्वार्थवृत्ति के कर्ता के पंक्तियों को भी उद्धृत किया है तीर्थकरौपपातिकानां नोपक्रमतो मृत्युः । शेषाणामुभयथा । इति तत्त्वार्थवृत्तौ। २२३. लोकप्रकाश, 4.72 २२४. लोकप्रकाश, 4.74,75 २२५. लोकप्रकाश 4.77 २२६. लोकप्रकाश 4.83
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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