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लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन १६५. लोकप्रकाश, 3.46, 47, 48 १६६. लोकप्रकाश, 3.56,57 १६७. (अ) लोकप्रकाश, 3.58,
(आ) 'संखावत्ताए णं जोणीए बहवे जीवा य पोग्गला य वक्कमंति चयंति उवचयंति, नो चेव णं निष्फज्जति।।-प्रज्ञापना सूत्र, नवम् योनि पद, पृष्ठ 548
(इ) गोम्मटसार जीवकाण्ड, गाथा 81 १६८. अतिप्रबल कामाग्नेर्विलीयन्ते हि ते यथा।
कुरुमत्या कर स्पृष्टोऽप्य द्रवल्लोह पुत्रकः।- लोकप्रकाश, 3.59 १६६. अर्हच्चक्रिविष्णु बलदेवाम्बानां द्वितीयिका।।- लोकप्रकाश, 3.60 २००. लोकप्रकाश, 3.60 २०१. लोकप्रकाश, 5.224, 225 २०२. लोकप्रकाश, 8.73 २०३. लोकप्रकाश, 9.5 २०४. लोकप्रकाश, 6.117 से 120 २०५. लोकप्रकाश, 7.8 २०६. लोकप्रकाश, 6.117 से 120 २०७. योनिविवृतसंवृता, मिश्रा सचित्ताचित्तत्वात् शीतोष्णात्वाच्च सा भवेत्।-लोकप्रकाश, 7.42,43 २०८. (अ) लोकप्रकाश, 3.49, 50
(आ) प्रज्ञापना सूत्र, नवम योनिपद, सूत्रगाथा 753,763, 772, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर
(इ) सर्वार्थसिद्धि,2.32 २०६. समवण्णइसमेया बहवोवि हु जोणिभेअलक्खा उ। समन्ना घेप्पंति ह एकजोणीए गहणेणं।
-आर्यश्यामाचार्य प्रज्ञापना सूत्र (मलयगिरिवृत्ति) द्वितीय खण्ड, नवम् योनिपद, पृष्ठ 691 २१०. सीआदिजोणीओ चउरासीती सयसस्सहिं।
असुहाओ य सुहाओ तत्थ सुहाओ इमा जाण।। अस्संखाउ मणुस्सा राइसर संखमादि आऊणं। तित्थयरनामगोअंसव्वसुहं होइ नायव्वं ।। तत्थवि य जाइसंपन्नाइ सेसाओ होंति असुहाओ। देवेसु किविसाइ सेसाओ होंति उ सुहाओ।। पंचेदियतिरिएसु हयगयरयणा हवंति उसुहाओ।
सेसाओ असुहाओ सुहवन्नेगिंदियादीया।।-लोकप्रकाश, 3.61 से 64, पृष्ठ 74 २११. 'कुलानि योनि प्रभवानि आहुः लोकप्रकाश, 3.66 २१२. 'कुलानि जातिभेदाः।- मूलाचार, गाथा 1046. २१३. कृमि-वृश्चिक-कीटादि नाना क्षुद्रांगिनां यथा।
एकगोमयपिण्डान्तः कुलानि स्युरनेकशः।- लोकप्रकाश, 3.67 २१४. (अ) लोकप्रकाश, 3.68
(आ) मूलाचार, गाथा 225 में मनुष्य के 14 लाख कुल स्वीकार कर कुलों का जोड़ एक