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________________ लोक-स्वरूप एवं जीव-विवेचन (13 109 और उच्छवास प्राण अपर्याप्तकाल में नहीं होते हैं तथा इन्द्रिय, काय व आयु तीनों प्राण पर्याप्त-अपर्याप्त दोनों काल में समान रूप से होते हैं। १७६. षट्खण्डागम धवला टीका, प्रथम खण्ड, जीवस्थान-सत्प्ररूपणा सूत्र 94, १७७. (अ) सार्थ्याभाव- षट् पर्याप्तियों व प्राणों का अभाव होना। (आ) उपपादयोगस्थान-जीव के नवीन पर्याय को धारण करने के प्रथम समय का स्थान। (इ) एकान्तानुवृद्धियोगस्थान-जीव के उत्पन्न होने के द्वितीय समय से लेकर शरीरपर्याप्ति से अपर्याप्त रहने के अन्तिम समय तक एकान्तनुवृद्धियोग स्थान होता है। (ई) गति-नरक, तिर्यच, मनुष्य और देव गति। (उ) आयु-आयुष्यकर्म का बंध। -षट्खण्डागमधवला टीका, 1/1.1.64 १७८. लोकप्रकाश, 4.69, 70 और 5.213 १७६. लोकप्रकाश, 6.14,15 १८०. लोकप्रकाश, 6.110 १८१. लोकप्रकाश, 6.110, 7.41, 8.72 और 9.4 १५२. आरभ्य पंच पर्याप्तीस्ते म्रियन्तेऽसमाप्य ता:-लोकप्रकाश, 7.7 १८३. (अ) लोकप्रकाश. 6.112 (आ) लोकप्रकाश, 7.41 (इ) लोकप्रकाश, 8.72 १८४. (अ) लोकप्रकाश, 6.112 (आ) लोकप्रकाश, 7.7 (इ) लोकप्रकाश, 6.14 और 15 १८५. (अ) लोकप्रकाश, 4.69 और 70 (आ) लोकप्रकाश, 5.213 १८६. गोम्मटसार, जीवकाण्ड, जीवतत्त्वप्रदीपिका, प्राणप्ररूपणाधिकार, गाथा 133, पृ. 267, 268 १६७. तैजसकार्मणवन्तो युज्यन्ते यत्र जन्तवः स्कन्धैः। औदारिकादियोग्यैः स्थानं तद्योनिरित्याहुः । लोकप्रकाश, 3.43 १८८. 'यूयते इति योनिः' तत्त्वार्थराजवार्तिक, 2.32 १८६. सर्वार्थसिद्धि, 2.32 १६०. सम्मूर्च्छनगर्भोपपाता जन्म।-तत्त्वार्थसूत्र 2.31 १६१. (अ) शीता चौष्णा च शीतोष्णा तत्तत्स्पर्शान्वयात् त्रिधा। सचिताचित्त मिश्रेति भेदतोऽपि त्रिधा भवेत्।।- लोकप्रकाश, 3.51 (आ) संवृता विवृता चैव योनिर्विवृत संवृता।।-लोकप्रकाश, 3.46 (इ) प्रज्ञापना सूत्र, नवम् योनिपद्, पृष्ठ537 (ई) तत्त्वार्थ सूत्र, 2.32, 'सचित्तशीतसंवताः सेतरा मिश्राश्चैकशस्तद्योनयः। १६२. प्रतिकमण सूत्र का '84 लाख जीवयोनि का पाठ-7 लाख पृथ्वीकाय, 7 लाख अप्काय,7 लाख तेजस्काय, 7 लाख वायुकाय, 10 लाख प्रत्येक वनस्पतिकाय, 14 लाख साधारण वनस्पतिकाय, 2 लाख द्वीन्द्रिय, 2 लाख त्रीन्द्रिय, 2 लाख चतुरिन्द्रिय, 4 लाख देवता, 4 लाख .. ... नारकी, 4 लाख तिर्यच पंचेन्द्रिय और 14 लाख साधारण मनुष्य-इस प्रकार ये कुल 84 लाख जीवों की योनि है। १६३. प्रज्ञापना सूत्र, नवम् योनिपद, पृष्ठ 542 १६४. सर्वार्थसिद्धि, 2.32
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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