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करी दधुं ॥ ६२ ॥ आ सुंदर कंठोष्ट नगरमां देवांगना समान कंठ होठ बगेरे अंगोथी सुंदर जे तुं, ते मने भोगत्रवाने माटे न मळी ॥ ६३ ॥ हे मृगाक्षी ! चकली मरत्रा पछी चकलानी माफक हवे तारा विना सुखनी आशा अने निर्वृत्ति क्यां ? ६४ ॥
आ प्रमाणे विलाप करता ते ब्राह्मणने एक ब्रह्मचारीए कह्युं केहे मूर्ख ! प्रयोजन नष्ट थया पछी हवे फोकट केम रडे छे ! ॥ ६५ ॥ पवनयी उडावेला सूका पांतरानी माफक जीव पण कर्मानुसार मळे छे अने जतो रहे छे ॥ ६६ ॥ जे प्रमाणे छूटा पडेला परमाणुओनो संबंध कदी थतो नथी ते प्रमाणे छुटा पंडेला जीवनो फरीथी संयोग थवो दुर्लभ छे ॥ ६७ ॥ रस, लोही, मांस, मेद, हाडकां, मज्जा, धातु वगेरेथी भरेला पातळी चामडीथी ढांकेला स्त्रीना शरीरमां मनोहर वस्तु कई छे? ॥ ६८ ॥ कदाच वयोगथी स्त्रीना शरीरनी बहारनी रचना को अंदर थई जाय अने अंदरनी रचना बहार थई जाय तो एनाथी आलिंगन कर तो दुर रहो, परंतु कोई देखतुं सरखं नथी ॥ ६९ ॥ हे मूढ ! लोही नीकळवानुं द्वार दुर्गन्त्रवाळु, वळी जेनुं नाम लेतां पण कंपारी आत्रे एवा विष्टाग्रह समान निन्द्य स्त्रीनी योनी केवी रीते उत्तम पुरुषोने स्पर्श करवा योग्य छे ! ॥ ७० ॥ खेद छे के - लाळ, खोखार, कफ, दंतम अने कीडानुं घर एवा स्त्रीना मुखने कविओवडे चन्द्रमानी उपमा केम अपाय छे ? ॥ ७१ ॥ व्रणनी माफक मांसना पिंड एवा जे स्त्रीना स्तनो छे, तेने तिक्ष्णबुद्धि पंडितो सुवर्णना कलशोनी उपमा केम आपे
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? ॥ ७२ ॥ घळा अशुचि पदार्थोंनी खाण विचित्र छिदवाळी स्त्री