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ज बनाव्यो छे. जो ए प्रमाणे न होय तो एने जावावाला सघळा माणसोने कामदेव पोताना बाणोथी शामाटे वींधते ? एटले ए राणी घणी रुपवती हती. एने जे कोइ जोतुं ते कामबाणने लीधे पागल जेवू थइ जतुं हतुं ॥ ४० ॥ ए वायुवेगा हाथोवडे पत्रवाली, नेत्रावडे पुष्पवाली, स्तनोवडे फळवाली अने तरुण पुरुषाना नेत्ररुपी मृगोथी अवगाहित तरुणतारुपी मनोहर वेलीनी समान शामती हती ॥ ४१ ॥ चितवन करतानी साथे प्राप्त थाय छे मनोहर भाग जेने एवो परम सुंदर जितशत्रु राजा ए वायु वेगानी साथ रमता सचीनी साथे इन्द्र तथा रातनी साथे कामनी माफक समय गाळतो हतो ॥ ४२ ॥ हवे ए विद्याधरोना राजाथी सेवन करायली वायुवेगाने वखाणवा जेवो छे वेग जेनो, महा उदयरुप शोकने दूर करवावालो नीतिनी माफक प्रार्थना करवालायक मनोवेग नामनो पुत्र उत्पन्न थयो ॥ ४३ ॥ जेणे पोतानी कलाना समूहथी चन्द्रमानी माफक नष्ट कर्यो छे अन्धकार जेणे एवो निर्मळ चारित्रवाळो ए कुमार दिवसे दिवसे पोताना निर्मळ गुण समूहनी साथे मोटो थवा लाग्यो । ४४ ॥ जे प्रमाणे लक्ष्मी नुं [ रत्नोनुं ] घर, स्थिर गंभीर समुद्र पोतानी लहेरोथी नादओने ग्रहण करे छे, ते प्रमाणे ए कुमार पण पोतानी निर्मळ बुध्धिथी राजाओनी चार प्रकारनी विद्याओ ग्रहण करवा लाग्यो ॥ ४५ ॥ तथा ए मोटो अनुभवी बाल्यावस्थानांन मुनींद्र महाराजोना चरणकमळोना भँवरा, जिनेन्द्र भगवान ना वाक्यामृतना पानथी पुष्ट समीचीन जैन धर्मनो अनुरागी पूजनीय बुद्धिनो धारक थयो ॥ ४६ ॥ अनंत छे सुख जेमां एवी परमपूज्य सिध्ध वधुने जलदी वश करवामां समर्थ, भवरुपी आग्निने जलसमान ए प्रमाणे, क्षायिक सम्यक्तरुपी रत्नने ते कुमार धारण करवा लाग्यो । ४७ ॥