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आतापवालो छे, समुद्र जडरुपछे, सुमेरु पर्वत कठोर छे अने इन्द्र गोत्र भेदी छे ए कारणथी चन्द्र, सूर्य, समुद्र, सुमेरु अने इन्द्र ए राजानी समान थइ शकता नथी, केमके ए राजामां उपला अवगुणामांथी एक पण अवगुण नहोतो ॥ ३५ ॥ जोके ए राजा पार्थिव हतो परंतु पार्थिव एटले पृथ्विनो विकार पाषाणादि जडरूप अज्ञानी नहोतो, पण उत्तम ज्ञाननो धारक हतो. तथा ए राजा पावन [पवित्र ] हतो, परन्तु पावन एटले पवननो विकार अस्थिर नहोतो, एटले स्थिर चित्तवालो हतो. तथा ए राजा कलानिधान [ कलाओनो भंडार चतुराइनो सागर ] हतो, परन्तु कलानिधान एटले चन्द्रमानी माफक कलंकी नहोतो, एटले सर्व दोषरहित हतो. ए सिवाय ए राजा वृषवर्धन [ धर्मने वधारवावालो ] हतो, छतां वृषवर्धन कहिये महादेवनी माफक स्त्रीनो अनुरागी नहोतो, परंतु साचाउपर प्रीतिवालो हतों ॥ ३६ ॥ ए राजाने जिनधर्म संबंधी पारमार्थिक तथा संसारिक विद्याओनी जाणकार अने वृध्धिरुप छे कामरुपी पवननो वेग जेने एवी वायुवेगा नामनी विद्याधरी अतिशय प्यारी राणी हती ॥। ३७ || कोइ कोइ स्त्रीमां आंखने हरण करवावाळं रूप होय छे, अने कोइ कोइ स्त्रीमां विद्वानोथी प्रशंसनिय शील पण होय छे, परंतु वायुवेगा राणीमां अनन्यलभ्य कहिये बीजी कोइ स्त्रीमां न होय एवं महाकान्ति सहित रूप अने शील बन्ने हतां ॥ ३८ ॥ महादेवने पार्वतीनी माफक, विष्णुने लक्ष्मिनी माफक दीवाने दीवेटनी माफक, साधुने दया समान, चन्द्रमाने चांदनी समान, सूर्य्यने प्रभा समान, जितशत्रु राजाने ए राणी मृगाक्षी अभिन्नरूप [ बे देह - होवा छतां पण एक रुप ] प्रिया हती ॥ ३९ ॥ आचार्य कहे छे के विधाताए ए महा कान्तिवाली वायुवेगाने बनावीने एनी रक्षा करवाने माटे काम जाणे रक्ष