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________________ दक्षिण श्रेणी उपर वैजयंती नामनी प्रसिध्ध नगरी छे, ते एवी छे के जाणे अनेक प्रकारना प्रकाशमान पोताना विमानोवडे शोभित देवोनी नगरीने पण ते जीते छे ॥ २८ ॥ ए नगरीमां सघळा लोको भोगभूमि ओनी माफक निराकुलतापूर्वक मनोवांछित भोगोने भोगवता परस्पर अत्यंत प्रेम सहित सुखथी काल निर्गमन करे छे ॥ २९ ॥ आचार्य शंका करे छे के मानो के प्रजाने सघळी सुन्दरता एकज जगाए बताववाने माटे विधाताए ए नगरीमा सघळां घरो उत्तमोत्तम मनोहर जोई जोईने बनाव्या छे ॥ ३० ॥ आचार्य कहे छ के, जे नगरीमां पोतानी प्रभावडे करीने स्त्रीयोए तो स्वर्गनी देवांगनाओने, विद्याधरोए देवोने, विद्याधरोना राजाओए इन्द्रोने, मकानोए विमानोने जीती लीधा छे एवी वैजयन्ती नगरी नुं वर्णन हमाराधी केवी रीते थइ शके ? कदापि थइ शके नहि ॥ ३१ ॥ ___ए नगरीमा स्वर्गना इन्द्रनी समान पोताना प्रतापवडे तिरस्कार कर्यु छे शत्रु- तेज जेणे एवा, तथा वज्रथी [ वज्रशस्त्र अथवा हीरामणिथी ] शोभायमान छे हाथ जेना एवा जितशत्रु नामना विद्याधरोना मंडलीक राजा राज्य करता हता ॥ ३२ ॥ जो के ए राजा पारकाना दोष प्रकट करवामां तो मौन हतो, परंतु न्याय शास्त्रनो विचार करवामां मौन नहोतो ए राजा पारकुं धन हरखामां तो हस्त रहित हतो, परंतु अहकारी शत्रुओ नो गर्व दूर करवाने माटे हाथ रहित नहोतो ॥ ३३ ॥ तथा परस्त्री जोवाने माटे जोके ते आंधळो हतो, परंतु जिनेन्द्र भगवाननी मनोहर प्रतिमाओना दर्शन करवाने माटे आंधळो नहोतो. जोके पाप कार्य करवाने माटे शक्तिरहित निर्बळ हतो, परंतु शिवसुखकारी धर्म कार्याने ग्रहण करवाने माटे शक्तिहीन नहोतो ॥ ३४ ॥ चन्द्रमातो कलंकी छे, सूर्य
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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