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४. जे माणस भोगोपभोग पदार्थोमांथी चित्त हठाबीने आरंभरहित चारे पर्वोमां (बे आठेम ने बे चौदश ) हमेशां उपवास कर्या करे छे, तेन चोथी प्रोषधप्रतिमानो धारक विद्वानोनो प्यारो प्रोषधी श्रावक'छे ।। ५६ ॥ .. .
५. जे श्रावक सघळा जीवोनी करुणा करवामां तत्पर थईने सघळा प्रकारना सचित्त पदार्थोंने छोडी प्रासुक अन्नजलादिक भोजनपान करे छे, तेने यतिओना नाथ गणधर भगवाने पांचमी सचित्त साग अतिमानो धारक सचित्तविरति शावक कहेलो छे ॥ ५७॥ ... ६. जे मंदरागी घात्मा दिवसमा स्वस्त्री सेवननो त्याग करे छे, तेने महात्मा पुरुषोए धन्यवाद योग्य दिन मैथुन त्याग प्रतिमानो धारक दिन मैथुनत्यागी शावक कहेलो छे ॥ ५८ ॥
७. जे श्रावक कामदेवरूपी महाशत्रुना गर्वने मर्दन करीने देव मनुष्यने जीतनारा स्त्रीओना कटाक्षरूपी बाणोथी जीताई जतो नथी, अर्थात् स्वस्त्रीमो पण त्यागी होय छे तेने सातमी ब्रह्मचर्यप्रतिमानो धारक "ब्रह्मचारी श्राक्क कहे छे ॥ ५९॥ - ८. जे धर्मात्मा श्रावक सघळा प्रकारनी जीवहिंसानां कारण जाणीने रागद्वेषादिकने मंद करीने सघळा प्रकारना आरंभने छोडी देछे; तेने यथार्थ ज्ञानना धारक पुरुषोए आठमी आरंभत्याग प्रतिमानो धारक अनारंमी श्रावक कह्यो छे ॥ ६० ॥
९. जे श्रावक उत्कृष्ट कषायरूपी शत्रुओने जीतीने जीवहिंसाना कारणरूप परिग्रहने जाणीने तृणनी माफक त्याग करी दे छे, तेने गणधरोए