SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नवमी परिग्रहत्याग प्रतिमानो धारक अपरिग्रही श्रावक कहेलो १०. जे विविध प्रकारना जीवोने तापकारक अग्नि समान गृह कायोमा सम्मति आपवानो त्याग करी दे छे, तेने ज्ञानी पुरुष दशमी अनुमति साग प्रतिमानो धारक अनुमतित्यागी श्रावक कहेछे ॥१२॥ ११. जे जितेन्द्रिय श्रावक पोताने माटे तैयार करेला भोजननो मन, वचन, कायाथी त्याग करीने मुनिओनी माफक अनुद्दिष्ट प्रासुक भोजन करे छे, तेने अग्यारमी उद्दिष्टत्याग प्रतिमानो धारक उदिष्ट सागी श्रावक कहे छे ॥ ६३ ॥ __आ प्रमाणे जे अनुक्रमे प्रमाद रहित अग्यार पदोने धारण करी श्रावकाचारने पाळे छे, ते पुरुष देवमनुष्यनी सुखसंपदाथी तृप्तचित्त थई सघळां कर्मोनो नाश करीने सिद्धपदने प्राप्त थाय छे ॥ ६४ ॥ ___ उपला सघळा व्रतोमां तारामां चंद्रमानी समान सघळा प्रकारना तापोने नष्ट करवामां समर्थ, तत्त्वोनो प्रकाशक देदिप्यमान एकमात्र सम्यक्त्वज मुख्य छे ॥ ६५ ॥ संसाररूपी वृक्षने कापवाने माटे शस्त्र अने सबळाने इष्टरूप आ सम्यक्त्वं निसर्गज अने अधिगमन भेदथी बे प्रकारनो कहेलो छे. तत्वोपदेश विनाज उत्पन्न थवावाळु सम्यक्त्व तो निसर्गज कहेवाय छे, अने जिनागमनो अभ्यास करवाथी अर्थात् परोपदेश थी उत्पन्न थनारूं सम्यक्त्व आधिगमज कहेवाय छे ॥ ६६ ॥ ए सिवाय ज्ञानचरित्रनी शुद्धि करवावाळु, भवभ्रमणनो नाश करवावाळु, अथवा मनोवांछित सुखने आपवावाळु जे सम्यक्त्र क्षायिक औपशमिक अने
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy