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________________ २१२ पोतानी माताना वस्त्रने पण चोरी ले छे, ते नीच जुगारी बीजा सघळा माणसोने कष्टदायक शुं कार्य नहि करे ? ॥५०॥ आ लोकमां दारु पीवो १, मांसभक्षण २, परद्रव्यहरण ३, जुगार रमवो ४, शिकार करवो ५, परस्त्री सेवन ६, वेश्यासंग ७, आ साते नीच पुरुषोना आचार छे, जे श्रेष्ठ पुरुषोए त्यागवा जोइए ॥ ५१ ॥ __जे मनुष्य श्रावकना ११ स्थानो (दरज्जा ) मां रहे छे, प्रवत्ते छे, तेज उत्कृष्ट श्रावक थाय छे अने तेज संसार परिभ्रमणनो नाश करवामां समर्थ एवा चौद गुणस्थानवर्ती योगी थवाने समर्थ थाय छे ॥ १२॥ १ जेना हृदयमा हारयष्ठिनी माफक तापने हरनारी, अने चन्द्रमानां किरणो समान उज्वल, निर्मलदृष्टि ( सम्यक्त्र ) थाय छे, तेज दर्शन प्रतिमाना धारक निर्दोष यूतिवाळा दर्शनी नामना श्रावक थाय छे ॥ ५३॥ २ महात्मा दुर्लभ्य धनने घरमा राखवा समान पोताना हृदयरूपी वरमा अतिचार रहित बार व्रतरत्नोंने धारण करी राखे छे, ते बुद्धिवान पुरुषने व्रती पुरुष बीजी व्रतपतिमाना धारक व्रतीश्रावक कहे छे ॥ १४ ॥ ___३. जे श्रावक इन्द्रियरूपी घोडाने अंकुशमां करीने प्रिय, आप्रिय अने मित्रशत्रुमां समताभाव राखीने त्रिकाल सामायिक करे छे, तेने प्रवीण पुरुषोए त्रीजी सामायिक प्रतिमानो धारक सामायिकी श्रावक कहेलो छे ।। ५५॥
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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