SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०५ आंगळी वगेरेथी इसारो करवानो अने लोलुपतानो त्याग करीने व्रतने वधारवावाळु मौन धारण करीने भोजन करे छे ॥ ९ ॥ तथा सुरनर वडे जेनां चरणो पूजित छे एवा निर्दोष पंचपरमेष्ठिनी नैवेद्य, गन्ध, अक्षत, दिप, धूप, पुष्पादिकथी दररोज पूजा करवी जोइए ॥ ९९ ॥ . जे आ पूजनीय श्रावकव्रतने अतिचार सहित पालन करे छे, ते पुरुष मनुष्य अने देवोनी संपदा भोगवीने निष्पाप थई निवार्णपदने पामे छे ॥ १०० ॥ व्रतनी प्रशंसा करवावाळी सघळां पापने चोरनारी जिनवती यतिनी वाणी. सांभळीने तथा देवमनुष्योवडे पूनित केवली भगवानना चरणकमलोने नमस्कार करीने ते निर्मल आशयवाळो पवनवेग श्रावकना व्रतरूपी रत्नोथी भूषित थइ गयो. ते ठीकज छे के, भव्यपुरुष अपरिमित ज्ञाननी गतिवाळा साधुओनी सदुपदेश 'रूप वाणीने मेळवीने ते वृथा केम करी शके ? अर्थात् एवा साधु पुरुषोनी आज्ञा अवश्य धारण करे छे ॥ १०१ ॥ आ प्रमाणे श्री अमितगतिआचार्य कृत धर्मपरिक्षा संस्कृत ग्रंथनी गुजराती भाषाटिकामां ओगणीसमुं प्रकरण पूर्ण थयुं. e
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy