________________
प्रकरण २० मुं.
ए पछी मुनिमहाराजे पवनवेगने कह्यु के, है भाई ! उपरना बार व्रतो सिवाय बीजा पण जे प्रकारना नियम श्रावकोए भक्तिपूर्वक पाळवा जोइए, ते कहुं छु ॥ १ ॥
जे रात्रिमा झीणा जंतुओनो संचार रहे छे, मुनिओ चालता फरता नथी, भक्ष्यअभक्ष्य वस्तुनो भेद मालूम पडतो नथी, आहारमा आवेला सूक्ष्म जीव जणाता नथी, एवी रात्रीमां दयाळु श्रावकोए कदी भोजन करवू जोइए नहि ॥ २--३ ॥ जे पुरुष जीभने वशीभूत थइ रात्रे भोजन करे छे, ते नीचने अहिंसाणुव्रत क्याथी होय ? ॥ ४॥ जे पुरुष रात्रे भोजन करे छे, ते सघळा प्रकारनी धर्मक्रियाथी हीन छे. तेनामां अने पशुमां शींगडा सिवाय कंईपण जुदाइ नथी ॥५॥ मूंड, शूकर, साबर, कंक, बिलाडी, तित्तर, बगलं, कुतरो, सारस, बान, कौवो, देडको, सर्प, ठीगणो, दराज खुजलीवाळो, गूगो, अधिक बाल वाळो, कर्शक, ठग, दरिद्री, दुर्जन, कोढीओ वगेरे जे थाय छे, ते रात्री भोजनना पापथीज थाय छे ॥ ६-७ ॥ जेओ रात्रीभोजनना त्यागी छे, तेओ पंडित, प्रियवादी, निरोगी, सज्जन, मंदरागी, त्यागी, भोगी, यशस्वी, समुद्रपर्यंत पृथ्वीना धणी, आदरणीय, भाग्यवान, वक्ता, कामदेवसमान सुंदर अने पूजित थाय छे ॥ ८-९ ॥ रात्रीभोजनना प्रभावथी हमेशां दुः • खनीज प्राप्ति थाय छे अने दिवसना भोजनथी सुखनी प्राप्ति थाय छे, ते