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थई शक्ता नथी केमके-चोखाना क्षेत्रमा कदी कोदरा उत्पन्न थयेला जोया नथी॥ २६ ॥ तमे पवित्राचारना धारकनेज ब्राह्मण कहो छो, शुद्धशीलनी धारक ब्राह्मणीथी उत्पन्न थयेलाने ब्राह्मण केम कहेता नथी? एनो उत्तर एछे के ब्राह्मण अने ब्राह्मगीनो सदाकाल शुद्धशीलादिक प्रावित्राचार रही शक्तो नथी केमके-बहु काल वीति जवापछी शुद्धशिलादिक सदाचार छूटी जतो अने जातिच्युत थतो जोईए छीए ॥ २७-२८ ॥ ते माटे जे जातिमां संयम नियम शील तप दान जितेन्द्रियता अने दया वगेरे हालमा विद्यमान होय, तेनेज सत्पुरुषोए पूजनीय जाति कही छे. ॥ २९॥ केमके तपादिकमां बुद्धि लगाडवाजि योजनगंधा सरखी धीवरी आदिना गर्भमां उत्पन्न थयेला व्यासादिकनी पूजा थती जोई ए छीए ॥ ३० ॥ तथा शीलसंयमादिना धारक नीच जाति होवा छतां पण स्वर्गमां गया अने जेओए शील संयमादिक छोडी दीघां, एवा कुलीन पण नरकमां गया छे ॥ ३१ ॥ उत्तम गुणोथीज उत्तम जाति पेदा थाय छे अने उत्तम गुणोनो नाश थवाथी नाश थई जाय छे, ते माटे बुद्धिमानोए उत्तम गुणोने आदरपूर्वक धारण करवा अने नीचताने करवावाळो जाति मात्रनो गर्व करवो छोडीने जेनाथी पोतामां उच्चपणुं आवे, एवा शीलसंयमादिनो सत्कार कर्या करवो जोईए ॥ ३२-३३ ॥ घणाएक मूढो शीलसत्यादि सदाचारो विनाज गंगा स्नानादिकथी पोताने पवित्र ( पाप राहत ) माने छे, माटे मारी समजमां तेना समान पापरुपी वृक्षने वधारवावाळो बीजो कोई पण नथी, केमके-शुक्र, शोणीत, वीर्य अने लोहीथी बनेला अने मातानी उगाळथी (माळी) वधेल महा अपवित्र शरीरने स्नान करीने पवित्र माने छे तो एनाथी वधारे आश्चर्य बीजं शुं