SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७२ करी शके छ? ॥ १७॥ ए सिवाय सज्जन विद्वजनोमां अपौरुषेयता सर्वत्र खरी पण मानवामां आवती नथी, कमेके- जार चोरोनो पंथ पण अपौरुषेय छे, माटे एवो कोण पुरुष छेके जे 'जारचोरोना पंथने योग्य न माने? ॥ १८ ॥ बी जे प्रमाणे दुष्ट शिकारी लोक वनमा जईने अनेक प्राणीओने दुखित करे छे, ते प्रमाणे यज्ञ कराववावाळा ब्राह्मणोद्वारा संसारभ्रमण→ कारण एवी जीव हिंसा करवामां आवे छे ॥ १९ ॥ दुष्ट भीलोनी माफक यज्ञ कराववावाळाए जबरदस्तिथी मारेला तथा दुखित करला अथवा व्याकुल करेला जीव स्वर्गमां जाय छे, माटे हे मित्र? वैदिकोनुं आ प्रमाणे कहे केQ आश्चर्यकारक छ? केमके स्वर्गनी जे उत्तम गतिने संसारी जीव धर्माचरण नियम अने ध्यानादिक कठण तपस्या कराने पाप्त करे छे, ते गाति जबरदस्तीथी मारला जीवोने केवी रीते पाप्त थई शके! ॥ २०-२१ ॥ ए कारणथी महा हिंसाना साधक वेद मतावलाम्बओनां वचन सत्पुरु पोए कदी पण मानवां जोईए नहि धर्मात्मा लोक हिंसक शिकारीओनुं वाक्य कदीपण माने छे! कदापि नहि. ॥ २२ ॥ वणाएक मूर्ख लोको सत्य, शौच, तप, शील, न्यान, स्वाध्याय वगेरे उत्तम आचरणोथी रहित थइने पण ब्राह्मणादि उत्तम जातिमां पेदा थवा मात्रीज पोताने धर्मात्मा अने सबळाथी उच्च (श्रेष्ठ) माने छे, माटे ए पण मोटो भ्रम छे, केमके-सदाचार कदाचारना कारणथीज जातिभेद थाय छे. फक्त ब्राह्मणनी जाति मात्रज श्रेष्ठ छे एवो नियम नथी ।। २३-२४ ॥ खरु जोतां ब्राह्मण क्षत्रि वैश्य अने शुद्ध ए चारे का मनुष्यजाति छे, परंतु आचार मात्रथी एना चार विभाग करवामां आवे छे ॥ २५ ॥ कोई कहे के-ब्राह्मण जातिमा क्षत्रिय कदापि
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy