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प्रलयकालनी अग्निनी माफक सर्व अंगमा दाह करवावाळी जठराग्नि (मूर्ख) बहु तेज थइ गई ॥६४ ॥जे भूखथी गभरायलो होय छे, ते कंइनी पण सामे जोतो नथी, तेथी में ते वखते जराक पलंगनी नीचे जोयुं, तो त्यां आकाशने निर्मल करवावालुं चंद्रमानां किरणोना जेवा स्वच्छ चोखाथी भरलं एक बहु मोटुं वासण जोयुं ॥ ६५-६६ ॥ ते पछी में घरना दरवाजा तरफ जोयुं तो कोइ पण नहोतुं, अने कोईना आववानो अवाज सांभळयो नहि त्यारे में ते चोखा थीमों भरी लीधुं. ते उचितज छे, अत्यंत क्षुधातुरने मर्यादा क्यों? ॥६७ ॥ दैवयोगथी तेज वखते मारी स्त्री आवी पहोंची, तेथी तेनी शरमथी जेवाने तेवा फूलेला गाल अने मोढा सहित हुं गुपचुप बेसी रह्यो ॥ ६८ ॥ तेणे फूलेला गाल तथा मुखने अने मिचेली आंखोने जोइ, जेथी मने मोटो रोग थयो छे, एवं समजीने पोतानी माने खबर करी ॥ ६९ ॥ मारी सासुए आवीने जायुं तो ते मारा जीववामांज संदेह करवा लागी. जे उचितज छे, प्रेमीजन कवखते पण पोताना प्रियजनोने मोटी आपदा सहित जोया करे छे ॥ ७० ॥ मारी सासु चिंता सहित जेम जेम मारा गालोने हाथथी दबावीने जोती हती, तेम तेम हुं विह्वल शरिर थइने गालोने कठण करीने पडी रह्यो हतो ॥ ७१ ॥ मारी स्त्रीने रडती सांभळीने गामनी घणी स्त्रीओ एकठी थइ गई अने सघळी स्त्रीओ जुदा जुदा प्रकारना रोग बताववा लागी, ॥ ७२ ॥ एके कह्यु के एणे मातापितानी अथवा सात प्रकारनी देवियोनी सेवा पूजा करी नथी, तेथीज आ रोग थयो छे, बीजं कंइज कारण नथी. ॥ ७३ ॥ बीजीए कह्यु के ग्वच्चीत आ कोइ देवतानो कोप छ, केमके ए सिवाय आवी अकस्मात