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________________ माफक हमारो व्यभिचारीओने भोगवीने हवे मारा उपर पण तेम दोष मूके छे! ॥ ३० ॥ हे मूर्ख! हे लुग्वी! ता मायुं मूडीने पांच चोटली राखीने गलामां शराबोनी माला पहरावीने शहरमा फेरवू तो ठीक लागे ! ॥ ३१ ॥ आ प्रमाणे ते बन्ने वच्चे दुष्ट राक्षसीओनी माफक लोकोने जोवालायक मोटी भयंकर लढाइ पइ ॥ ३२ ॥ त्यारे रुक्षीए गुस्से थइने कह्यु के, ले, तुं अने तारी मा पोताना ( धणीना ) पगनी रक्षा कर, एम कहीने मूशलं लइने, मारो (मूखनो ) बीजो पग ते रुक्षीए भांगी नांख्यो ॥ ३३ ॥ आ बे दुष्ट वाघणाओथी (ते बन्ने स्त्रीओथी) भयभितचित्त कांपत शरिर थइने हुं तो बकरीनी माफक गुपचुप जोतोज रह्यो ॥ ३४ ॥ ज्यारथी में स्त्रिओना भयथी गुपचुप पग भंगावी नांख्या, त्यारथी मारुं कुंटहंसगति एवं नाम पडी गयुं ॥ ३५ ॥ जुओ मारी केवी मूर्खता छे के में ते वखते स्त्रिओना भयकी कापित शरिर थइने मौन धारण कर्यु ! ॥ ३६ ॥ जेवो दुःशील, कुरुप, नीच कुलनी स्त्रिओने सैभाग्य रुप अने सुंदरतानो गर्व होय छे, तेवो गर्व सुशील, सुरुप, कुलीन, निष्पाप धर्मात्मा स्त्रिओने कदी होतो नथी ॥ ३७-३८ ॥ पोतार्नु हित चाहनार समजदार पुरुषोए कुलीन, भक्ति करवावाली शांत अने धर्ममार्गनी जाणकार एकज स्त्री करवी जोइए ॥ ३९ ॥ जे पुरुष स्त्रीओने वशीभूत होय छे, ते निःसंदेह आ लोकमां कुलनी कीर्ति अने मुखनो नाश करे छे, अने परलोकमां असह्य नरक वेदना भोगवे छे ॥ ४० ॥ आ जगतमां वरु वाघ अने सर्पोथी निर्भय रहेवावाळा तो घगा पुरुष छे परंतु स्त्रीओथी नहि डरवावाळो एक पण देखातो नथी ! ॥ ४१ ॥ जे पुरुष कुटहंसगतिनी
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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