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________________ ११५६) आहारक संघातन नामकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से आहारक शरीर रुप में परिणत पुद्गलों का परस्पर सान्निध्य हो, वह आहारक संघातन नाम कर्म है । ११५७) तैजस संघातन नामकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से तैजस शरीर रुप में परिणत पुद्गलों का परस्पर संघात हो, उसे तैजस संघातन नाम कर्म कहते हैं । ११५८) कार्मण संघातन नामकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से कार्मण शरीर रुप में परिणत पुद्गलों का परस्पर पिण्डीभाव हो, उसे कार्मण संघातन नामकर्म कहते हैं। ११५९) बंध तत्त्व को जानने का क्या उद्देश्य है ? उत्तर : "संजोग मूला जीवेण पत्ता दुक्ख परंपरा" संयोग अर्थात् बंध, जो सभी दुःखों का मूल है और दुःखों की परंपरा को आगे बढाने वाला है। चार प्रकार के बंध को समझकर आत्मा अपने अंदर पडे हुए अनंत ज्ञान-दर्शन-चारित्रादि गुणों को प्रगट करने का प्रयत्न करें। इसी बंध के कारण मुझे इस चार गति के ८४ लाख जीवयोनियों में भटकना पड़ रहा है, मेरी यथार्थ स्थिति से विपरीत अनेक प्रकार की विकृति से मेरी आत्मा गुजर रही है, जिससे मैंने अति कष्ट सहन किया है। प्रकृति, स्थिति, रस और प्रदेश के कारण कर्मों की स्थिति का ज्ञान मुझे होने लगा है अब मेरा हृदय इन कर्मों के जाल से, इस पिंजरे से छुटने को बेचैन हो रहा है, इस प्रकार से विचार कर बंध को हेय रूप में समझ उसे त्याग कर, आत्मा की अबंधक स्थिति को प्राप्तकर शाश्वत सुख का भोक्ता बने, यही उद्देश्य इस बंध तत्त्व को जानने का है। ___ मोक्ष तत्त्व का विवेचन ११६०) मोक्ष किसे कहते हैं ? उत्तर : आत्मा के संपूर्ण प्रदेशों से समस्त कर्म पुद्गलों का सर्वथा क्षय हो जाना, मोक्ष कहलाता है। ११६१) मोक्ष के मुख्य कितने भेद हैं ? ------- ३६२ श्री नवतत्त्व प्रकरण -
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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