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________________ (१२) स्पर्श-८ १) शीत, २) उष्ण, ३) स्निग्ध, ४) रुक्ष, ५) गुरु, ६) लघु, ७) कठोर, ८) मृदु । (१३) आनुपूर्वी-४ १) नरकानुपूर्वी, २) तिर्यंचानुपूर्वी, ३) मनुष्यानुपूर्वी, ४) देवानुपूर्वी ।। (१४) विहायोगति-२१) शुभविहायोगति, २) अशुभविहायोगति । (१५) प्रत्येक प्रकृतियाँ-८ १) पराघात, २) उच्छ्वास, ३) आतप, ४) उद्योत, ५) अगुरुलघु, ६) तीर्थंकर, ७) निर्माण, ८) उपघात (१६) सदशक-१० १) त्रस, २) बादर, ३) पर्याप्त, ४) प्रत्येक, ५) स्थिर, ६) शुभ, ७) सुभग, ८) सुस्वर, ९) आदेय, १०) यश (१७) स्थावर दशक-१० १) स्थावर, २) सूक्ष्म, ३) अपर्याप्त, ४) साधारण, ५) अस्थिर, ६) अशुभ, ७) दुर्भग, ८) दुःस्वर, ९) अनादेय, १०) अपयश । (७) गोत्र-२ (१) उच्चगोत्र, (२) नीचगोत्र । (८) अंतराय-५ (१) दानान्तराय, (२) लाभान्तराय, (३) भोगान्तराय, (४) उपभोगान्तराय, (५) वीर्यान्तराय । (इन समस्त प्रकृतियों का विस्तृत वर्णन पुण्य तथा पापतत्त्व में देखे) ११४६) नामकर्म की ६७ प्रकृतियाँ कौन-सी हैं ? उत्तर : पिंडप्रकृतियाँ - गति-४, जाति-५, शरीर-५, अंगोपांग-३, संहनन-६, संस्थान-६, आनुपूर्वी-४, विहायोगति-२, वर्णादि-४ ये कुल ३९ । प्रत्येक प्रकृतियाँ - ८, पराघातादि । सदशक-१० त्रसादि । स्थावर दशक-१० स्थावरादि । ३९ + ८ + १० + १० = ६७ ११४७) बंधन किसे कहते हैं ? उत्तर : जो कर्म लाख के समान बंधे हुए और बंधनेवाले औदारिकादि शरीरों के पुद्गलों का आपस में सम्बन्ध कराता है - परस्पर मिलाता है, उस कर्म को औदारिकादि बंधन नामकर्म कहते हैं। ११४८) औदारिक-बंधन नामकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से पूर्वगृहीत औदारिक शरीर के पुद्गलों के साथ -- ३६० त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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