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________________ शेष रहता है। उसके समान त्रिस्थानिक रसबन्ध होता है । इसमें फल देने की शक्ति दूसरे से ज्यादा होती है । १०४०) चतुःस्थानिक रसबन्ध किसे कहते हैं ? उत्तर : गन्ने या नीम के रस को ३/४ जलाने पर १/४ भाग शेष रहता है। उसके समान चतुःस्थानिक रसबन्ध होता है। उसमें सबसे ज्यादा फल देने की शक्ति होती है। १०४१) शुभ प्रकृतिओं का रस किसके समान होता है ? उत्तर : शुभ प्रकृतिओं का रस गन्ने के समान मधुर होने से जीव को आह्लादकारी होता है। १०४२) अशुभ प्रकृतिओं का रस किसके समान होता है ? उत्तर : अशुभ प्रकृतिओं का रस नीम के समान कडवा होता है, जो जीव को पीडाकारी होता है। १०४३) शुभ (पुण्य) प्रकृति का मंद रस कैसे बंधता है ? उत्तर : संक्लेश के द्वारा। १०४४) संक्लेश किसे कहते हैं ? उत्तर : अनुकूल पदार्थों में राग तथा प्रतिकूल पदार्थों में द्वेष के परिणाम स्वरुप जिस तीव्र कषाय का उदय होता है, उसे संक्लेश कहते हैं । १०४५) शुभ (पुण्य) प्रकृति में तीव्र रस कैसे बंधता है ? उत्तर : परिणाम की विशुद्धि के द्वारा। १०४६) पाप प्रकृति का मंद तथा तीव्र रस कैसे बंधता है ? उत्तर : पाप प्रकृति का मंद रस विशुद्धि के द्वारा तथा तीव्र रस संक्लेश द्वारा बंधता है । इसे इस प्रकार समझ सकते हैं - पुण्यप्रकृतिका मंदरस | संक्लेश से पाप प्रकृतिका | मंदरस | विशुद्धिसे | पुण्यप्रकृतिका तीव्ररस | विशुद्धि से | पाप प्रकृतिका | तीव्ररस संक्लेशसे १०४७) चारों कषाय द्वारा पुण्य तथा पाप प्रकृतिओं का कौन-कौन सा रसबन्ध होता है ? - - - - - - - - - - - - - - ३४० श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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