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एकत्व, (५) अन्यत्व, (६) अशुचित्व, (७) आश्रव, (८) संवर, (९) निर्जरा, (१०) लोकस्वभाव, (११) बोधिदुर्लभ, (१२) धर्मसाधक
अरिहंत दुर्लभ । ८२४) अनित्य भावना किसे कहते हैं ? उत्तर : तन, धन, यौवन, कुटुंब आदि सांसारिक पदार्थ अनित्य व अशाश्वत
है। केवल एक आत्मा ही नित्य है, इस प्रकार का विचार करना,
अनित्य भावना है। ८२५) अशरण भावना किसे कहते हैं ? उत्तर : बलिष्ठ के पंजे में फंस जाने पर निर्बल का कोई रक्षक नहीं होता, उसी
प्रकार आधि-व्याधि, जरा-मरण के घिर आने पर माता-पिता-धनपरिवार कोई रक्षक नहीं होता । केवल जिनधर्म ही रक्षक होता है, ऐसा
चिन्तन करना अशरण भावना है। ८२६) संसार भावना से क्या अभिप्राय है? उत्तर : चतुर्गति रूप इस संसार में जन्म-जरा-मृत्यु के भीषण दुःख जीव भोगता
है। स्व कर्मानुसार नरक, तिर्यञ्च, देव, मनुष्यादि गतियों में अपार दुःख झेलता है। जो जीव यहाँ माता के रूप में सम्बन्ध रखता है, वही किसी अन्य जन्म में पत्नी, पुत्री, बहिन आदि के रूप में परिवर्तित हो जाता है । निश्चय ही यह संसार विलक्षण, नश्वर तथा परिवर्तनशील है, इस
प्रकार की अनुप्रेक्षा करना, संसार भावना है । ८२७) एकत्व भावना से क्या आशय है ? उत्तर : जीव अकेला ही आया है और अकेला ही जायेगा । शुभाशुभ कर्मों
का फल भी अकेला ही भोगेगा। दुःख के काल में उसका कोई मित्रबंधु-बांधव सहयोग नहीं देगा, इसप्रकार अकेलेपन का अनुभव करना
एकत्व भावना है। ८२८) अन्यत्व भावना किसे कहते हैं ? उत्तर : मैं चैतन्यमय आत्मा हूँ। माता-पिता आदि परिवार मुझसे भिन्न है ।
__ यह शरीर भी मुझसे अन्य है। इस प्रकार की विचारणा करना, अन्यत्व श्री नवतत्त्व प्रकरण
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