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________________ स्थान का त्याग करना । (२) स्त्रीकथा त्याग स्त्री के रुप, लावण्य की चर्चा न करना । (३) निषद्या त्याग - जिस स्थान या आसन पर स्त्री बैठी हो, उस पर ४८ मिनट तक न बैठना । - ३०२ (४) अंगोपांग निरीक्षण त्याग स्त्री के अंगोपांग न देखना । (५) संलग्न दीवार त्याग - संलग्न दीवार में जहाँ दम्पति रहते हो, ऐसे स्थान का त्याग करना । (६) पूर्वक्रीडित भोगों का विस्मरण पूर्वकाल में भोगे हुए भोगों को याद न करना । (७) प्रणीत आहार त्याग – गरिष्ठ- मादक, घी से झरते हुआ आहार न - - - करना । (८) अति आहार त्याग - प्रमाण से अधिक भोजन न करना । (९) विभूषा त्याग स्नान, इत्र, तैल आदि से मालिश आदि शरीर की शोभा बढानेवाली प्रवृत्तियों का त्याग करना । ८२१ ) क्या यतिधर्म केवल साधु द्वारा ही आचरणीय है ? उत्तर : यद्यपि इसका नाम श्रमणधर्म है तथापि श्रावक भी देशविरतिरुप चारित्र धर्म का पालन करता है, अतः उसके लिये एवं सभी के लिये दशविध धर्म आचरणीय है 1 बारह प्रकार की भावनाओं का विवेचन ८२२) भावना किसे कहते हैं ? उत्तर : चित्त को स्थिर करने के लिये किसी तत्त्व पर पुनः पुनः चिंतन करना भावना है। अथवा भावना का सामान्य अर्थ तो मन के विचार, आत्मा के शुभाशुभ परिणाम है। इसका दूसरा नाम अनुप्रेक्षा भी है। मोक्षमार्ग के प्रति भाव की वृद्धि हो, ऐसा चिंतन करना भावना है । ८२३) भावनाएँ कितनी व कौन कौन - सी हैं ? उत्तर : भावनाएँ बारह हैं - (१) अनित्य, (२) अशरण, (३) संसार, (४) श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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