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________________ निमित्त से मार्ग में युगमात्र (३ १/२ हाथ) भूमि को एकाग्र चित्त से देखते हुए और सजीव मार्ग का त्याग करते हुए यतनापूर्वक गमनागमन करना, ईर्या समिति है। ७५०) भाषा समिति किसे कहते हैं ? । उत्तर : आवश्यकता होने पर सत्य, हित, मित, प्रिय, निर्दोष और असंदिग्ध भाषा बोलना, भाषा समिति हैं । ७५१) एषणा समिति किसे कहते हैं ? उत्तर : सिद्धान्त में कही गयी विधि के अनुसार दोष रहित आहार-पानी आदि ग्रहण करना एषणा समिति है। यह समिति मुख्य रूप से साधु के तथा गौण रुप से पौषधव्रतधारी श्रावक के होती है। ७५२ ) एषणा समिति के कितने भेद हैं ? उत्तर : तीन - (१) गवेषणा, (२) ग्रहणैषणा, (३) परिभोगैषणा ।' ७५३) गवेषणा किसे कहते हैं ? उत्तर : गवेषणा का अर्थ है - खोजना, ढूंढना । श्रमण वृत्ति के अनुसार १६ उद्गम तथा १६ उत्पादन दोषों से रहित निर्दोष आहार खोजना, गवेषणा कहलाता है। .. ७५४) आहार के कितने दोष हैं ? उत्तर : सैंतालीस - १६ उद्गम (गृहस्थ के द्वारा लगने वाले दोष), १६ उत्पादना – (साधु से लगने वाले दोष) १० एषणा (साधु तथा दाता दोनों की ओर से लगने वाले दोष), ५ मांडली (आहार करते समय) । ७५५) उद्गम के १६ दोष कौनसे हैं ? उत्तर : (१) आधाकर्म - साधु के लिये बना हुआ आहार लेना । (२) औद्देशिक - स्वयं के लिये बना हुआ आहार लेना । (३) पूतिकर्म - निर्दोष आहार में सदोष आहार मिला हो, वह आहार लेना । (४) मिश्र आहार - साधु तथा गृहस्थ दोनों के लिये बना आहार लेना । (५) स्थापना आहार - साधु के लिये रखा आहार लेना । --------- श्री नवतत्त्व प्रकरण २८७
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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