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________________ (९) शील संवर - ब्रह्मचर्य का सेवन करना । (१०) अपरिग्रह संवर - परिग्रह नहीं करना । (११) श्रोत्रेन्द्रिय संवर - कान को वश में रखना । (१२) चक्षुरिन्द्रिय संवर - आँख को वश में रखना । (१३) घ्राणेन्द्रिय संवर - नाक को वश में रखना । (१४) रसनेन्द्रिय संवर - जीभ को वश में रखना । (१५) स्पर्शेन्द्रिय संवर - शरीर को वश में रखना । (१६) मन संवर - मन को वश में रखना । (१७) वचन संवर - वचन को वश में रखना । (१८) काय संवर - काया को वश में रखना । (१९) भंडोपकरण संवर - वस्त्र-पात्र आदि उपकरण जयणा से रखना । (२०) सुसंग संवर - खराब संगति से दूर रहना। ७२५) आगमों में संवर का वर्णन कहाँ आया है ? उत्तर : स्थानांग सूत्र के पांचवें और दसवें स्थान में, प्रश्नव्याकरण सूत्र के संवर द्वार में तथा समवायांग सूत्र के पांचवें समवाय में संवर का वर्णन आया ७२६) सुदेव, सुगुरु और सुधर्म पर आस्था रखने से कौनसा संवर होता है ? उत्तर : सुदेव, सुगुरु और सुधर्म पर श्रद्धा रखने से सम्यक्त्व (समकित) संवर की आराधना होती है। ७२७) व्रत, नियम, त्याग, प्रत्याख्यान ग्रहण करना कौनसा संवर है ? उत्तर : व्रत, नियम, त्याग, प्रत्याख्यान ग्रहण करना दूसरा व्रत संवर है । ७२८) क्रोध नहीं करने से क्या होता है ? उत्तर : क्रोध नहीं करने से अकषाय रूप संवर की आराधना होती है । ७२९) मन पसंद मिष्टान्न का त्याग, स्वाद के लिए ऊपर से नमक लेने का त्याग करने से कौनसे संवर की आराधना होती है ? उत्तर : उपरोक्तानुसार त्याग करने से रसनेन्द्रिय को वश में रखने रुप संवर की आराधना होती है। २८४ तत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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