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________________ इग समये - एक समय में (सिद्ध हो) अणेगा सिद्धा - अनेक सिद्ध हो इग सिद्धा - एक सिद्ध है ते - वे य - और अणेगसिद्धा - अनेक सिद्ध है । इग समये - एक समय में . य - और वि - भी भावार्थ तीर्थंकर जिनसिद्ध है, पुंडरीकादि गणधर अजिन सिद्ध है, गौतमादि गणधर तीर्थ सिद्ध तथा मरुदेवी माता अतीर्थ सिद्ध है ॥५६॥ भरतचक्रवर्ती गृहस्थलिंग सिद्ध है, वल्कलचीरी अन्यलिंग सिद्ध है, साधु स्वलिंग सिद्ध है तथा श्रमणं प्रमुखी चंदना स्त्रीलिंग सिद्ध है ॥५७॥ ___ गौतमादि पुरुषलिंग सिद्ध है, गांगेय आदि नपुंसकलिंग सिद्ध है, करकंडु प्रत्येकबुद्ध सिद्ध तथा कपिलादि स्वयंबुद्ध सिद्ध है ॥५८॥ तथा गुरु से बोध पाया हुआ बुद्धबोधित सिद्ध है। एक समय में एक ही सिद्ध होनेवाला एकसिद्ध तथा एक समय में अनेक सिद्ध होनेवाले अनेक सिद्ध है ॥५९॥ विशेष विवेचन प्रस्तुत गाथा चतुष्क में तीन गाथाओं में सिद्धों के १२ भेदों को उदाहरण सहित स्पष्ट किया है तथा ५९ वीं गाथा में उदाहरण नहीं देकर अन्तिम ३ भेदों को केवल व्याख्यायित किया है। चूंकि हर आत्मा, जो भी मोक्ष में जाता है, वह या तो एकाकी होता है या उससे ज्यादा संख्या भी हो सकती है। जैसे परमात्मा महावीर एकाकी मोक्ष में गये, अतः एकसिद्ध कहलाये । ऋषभदेव, उनके ९९ पुत्र तथा भरत चक्रवर्ती के ८ पुत्र, इस प्रकार कुल १०८ जीव एक साथ मोक्ष में गये, अतः अनेक सिद्ध कहलाये । इसी प्रकार गुरु के उपदेश से प्रतिबुद्ध होकर मोक्ष में जाने वाला हर आत्मा बुद्धबोधित सिद्ध है। सिद्ध के १५ भेदों की व्याख्या के साथ ही ९वें मोक्षतत्त्व की व्याख्या भी संपूर्ण हुई। --------- श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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