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________________ संस्कृतपदानुवाद द्वादशविधं तपो निर्जरा च, बन्धश्चतुर्विकल्पश्च । प्रकृति स्थित्यनुभागप्रदेश भेदैर्ज्ञातव्यः ॥३४॥ शब्दार्थ बारसविहं - बारह प्रकार का | अ - और तवो - तप पयइ-ट्ठिई-अणुभाग - प्रकृतिणिज्जरा - निर्जरा (तत्त्व) है स्थिति-अनुभाग य - और प्पस - प्रदेश बंधो - बंध भएहि - भेदों से चउ विगप्पो - चार (प्रकार) का है | नायव्यो - जानना चाहिए । ___ भावार्थ बारह प्रकार का तप निर्जरा है तथा प्रकृति, स्थिति, अनुभाग तथा प्रदेश, इन चार भेदों से बंध चार प्रकार का है ॥३४॥ - विशेष विवेचन प्रस्तुत गाथा में निर्जरा तथा बंध तत्त्व के भेदों की संख्या व नामनिर्देश किया है। अगली गाथा में इसे विस्तृत रूप से स्पष्ट करेंगे । निर्जरा तत्त्व के १२ भेद ६ बाह्य तथा ६ आभ्यन्तर तप - गाथा अणसणमूणोअरिया, वित्तीसंखेवणं रसच्चाओ। काय किलेसो संलीणया य, बज्झो तवो होइ ॥३५॥ पायच्छित्तं विणओ, वेयावच्चं तहेव सज्झाओ । झाणं उस्सग्गो वि अ, अभितरओ तवो होइ ॥३६॥ अन्वय अणसणं ऊणोअरिया, वित्ती संखेवणं, रसच्चाओ, काय-किलेसो य संलीणया, बज्झो तवो होइ ॥३५॥ -- -- ----- -- --- -- - श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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