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देववंदन जाय अर्थसहित.
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( जेयन के० ) ए जेदकी. ए मां प्रथमनी पांच संपदा ते इरियावहिनी मूल संपदा जाणवी, ने पालनी ( तिनि के ) त्रस संपदा ते रि यावहिनी (चूलाए के०) चूलिकारूप जाएावी ॥३३॥ हवे नरांनी प्रत्येक संपदाना पदनी संख्या तथा श्रादिपद कडे वे.
5 तिच पण पण पण 5, चल तिपय सक्कथय संपयाइपया ॥ नमु प्राग पुरिसो, लोग अजय धम्मऽप्प जिण सबं ॥ ३४ ॥
अर्थः- पहेली (5 के वे पदनी, बीजी (ति के० ) त्रण पदनी, त्रीजी (चन के० ) चार पदनी, चोथी (पण के० ) पांच पदनी, पांचमी ( पण के० ) पांच पदनी, बडी (परा के ) पांच पदनी, सातमी (50) बे पढ़नी, आठमी (चन के० ) चार पढ़नी ने नवमी (तिपय के० ) त्रण प दनी ए ( सक्कथय के० ) नमुने विषे संपदानां पद काां, ते सर्व मली तेत्रीश जाणवतं.
हवे नमुनी (संपया के०) संपदाना ( श्रा